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घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है। कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है। शिशु, युवा, बाल, किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है। राष्ट्र के आधारस्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है। "अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है। इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे।।" (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण
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Thursday, April 11, 2013

नव संवत 2070 ,चैत्र प्रतिपदा की शुभकामनाएं। आप सभी को सपरिवार मंगलमय हो।

नव संवत 2070 ,चैत्र प्रतिपदा की शुभकामनाएं।आप सभी को सपरिवार मंगलमय हो। 
अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें।
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं;
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं।
यह केवल एक कैलेंडर नहीं, प्रकृति से सम्बन्ध है;
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है। 
 तदनुसार 11 अप्रेल 2013, इस धरा की 1955885113वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ. आज के दिन की प्रतिष्ठा ?
1.भगवान राम का राज्याभिषेक. 2.युधिस्ठिर संबत का आरंभ 3 .बिक्रमादित्य का दिग्विजय. 4.बासंतिक नवरात्र का आरंभ 5 .शिवाजी महाराज की राज्याभिषेक.6 .राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवर जी का जन्मदिन. 
ईश्वर हम सबको ऐसी इच्छा शक्ति प्रदान करे जिससे हम अखंड माँ भारती को जगदम्बा का स्वरुप प्रदान करे। धरती मां पर छाये वैश्विक ताप रुपी दानव को परास्त करे... और सनातन धर्म का कल्याण हो।..
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नव संवत 2070 ,चैत्र प्रतिपदा की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं
जय भबानी, जय श्री राम, भारत माता की जय(विलम्ब ले लिए खेद है, 2 दिन से सर्वर बंद था।)
नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल  अन्य सूत्र) की 60 से अधिक देशों में एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी इस सोच  संघर्ष के साथी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,  Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, तिलक -संपादक युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. 9911111611, 9999777358, 9911383670. yugdarpan.com ,
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
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Friday, January 4, 2013

स्वामी विवेकानन्द 150 वीं जयंती वर्ष

Jagran Patrak

Swami Vivekananda 150th Jayantiस्वामी विवेकानन्द 150 वीं जयंती वर्ष

12 जनवरी 2013 से 12 जनवरी 2014



स्वामी विवेकानन्द को भारत में सब कोई जानते हैं। नरेन्द्र विश्वनाथ दत्त (स्वामी विवेकानन्द) का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। उनके महाविद्यालय में पढ़ते समय ही उनके पिताजी का निधन होने से सारे परिवार को दुःख और दरिद्रता का सामना करना पड़ा। बेकारी, गरीबी और भूख से ग्रस्त ऐसी स्थिति में भी ईश्वर को जानने की उनकी इच्छा तीव्र बनी रही। इस स्थिति में उनका संपर्क श्रीरामकृष्ण परमहंस के साथ हुआ। एक बार जब उन्होंने गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस से मोक्ष के बारे में पूछा तो गुरु ने कहा, ‘‘तू कितना स्वार्थी है रे! केवल स्वयं के बारे में सोचता है! तुझे तो माँ का कार्य करना है!’’
दिव्य अनुभूति की स्थिति में श्रीरामकृष्ण परमहंस ने कहा था, शिव भाव से जीव सेवा। सारे समाज में ही ईश्वर है, प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर है और उसकी सेवा ही पूजा है। सारे विश्व में ईश्वर है यह सत्य होते हुए भी हम इसे जानते नहीं है। इसका अनुभव लेना और इसके अनुसार आचरण तथा व्यवहार करना ही धर्म है। और यह अनुभूति देनेवाला धर्म ही भारत का प्राणस्वर है, भारत की आत्मा है।
अपना भारतीय समाज कैसा है यह समझने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने सम्पूर्ण भारत की परिक्रमा की। वे किसान, मजदूर, व्यापारी, उद्योजक, कलाकार, विद्वान, सरदार, राजा-महाराजा सभी को मिले। वे कभी राजमहलों में, महलों में, बंगलों में तो कभी कुटिया में, झुग्गी में, गरीब बस्ती में तो कभी सड़क के किनारे पेड़ के नीचे भी रहे। भारत के गरीब, दीन, पिछड़े समाज को देखकर वे बहुत व्यथित हुए।
उनके मन में विचार आया कि क्या करने से इनकी स्थिति में सुधार होगा? क्या करने से इनके लिए रोटी, कपड़ा, मकान आदि मूलभूत आवश्यकताएँ सहज उपलब्ध होंगी? क्या करने से इनमें विश्वास जगेगा? इस तरह दुखी, चिंतित, अस्वस्थ मन से वे घूमते-घूमते कन्याकुमारी पहुँचे। भारत का उत्थान कैसे होगा यह एक ही विचार उनके मन में भरा था।
मैं क्या कर सकता हूँ? मुझे क्या करना है? इसी विचार में वे समुद्र के बीच स्थित श्रीपाद शिला पर तैरते हुए गये। तीन दिन... पूरे 72 घंटे वे वहाँ ध्यानस्थ गौरव, सुख-समृद्धि और वर्तमान की दीन, गुलामी की अवस्था उनकी नजर के सामने थी। उन्होंने भारत की शक्ति के बारे में सोचा।
ईश्वर सर्वत्र है, यह पूरा अस्तित्व एकात्म है, परमात्मा से जुड़ा हुआ है। भारत का यह आध्यात्मिक ज्ञान ही भारत की शक्ति है। भारत पुण्यभूमि है, तपोभूमि है। दीन, पिछडे़, गरीब सभी में ईश्वर है। इनकी भूली हुई इस शक्ति को इनके ह्रदय में जगाना होगा। यही मेरा जीवन कार्य रहेगा। इनकी सेवा ही मेरे जीवन की योजना होगी। यही था स्वामीजी को अपने गुरु ने बताया हुआ माँ का कार्य।
परदेश में जाकर अपने देशवासियों के लिए मैं क्या कर सकता हूँ, यह विचार उनके मन में आया। 1893 में
अमेरिका के शिकागो में होने वाले सर्व धर्म परिषद में भाग लेने वे अमेरिका गये। दुर्भाग्यवश, उस समिति का पता उनके पास से खो गया। रातभर रेल के माल यार्ड में पड़े एक बड़े बक्से में रहे। कोई सहायता नहीं मिली। नीग्रो, काला कु त्ता  आदि अपमानजनक शब्द मिले। फिर भी प्रयास नहीं छोडा।
स्वामीजी ने शिकागो में दिए व्याख्यान के कारण वे दुनिया में मशहूर हुए। अमेरिका में सुख-सुविधाओं से युक्त अलीशान महलों में उनका निवास था। पर अपने दीन, दरिद्री देशबांधवों की स्मृतिकर वे सो नहीं पाए। रात भर रोते रहे। मैं यहाँ वैभव, सुख-सुविधाओं में! और मेरे देश बांधव कैसी पीड़ा, दुःख और अभाव में जी रहे हैं! क्या करने से इनका दुःख, इनकी पीड़ा दूर होगी? इस विचार से वे रात भर तड़पते रहे, रोते रहे, जैसे माँ अपने बच्चे के लिए तड़पती है। धर्म अनुभूति में है, मत में नहीं। सभी मार्ग एक ही गंतव्य की ओर जाते हैं। सबका स्वीकार, तिरस्कार नहीं। सब से स्नेह, घृणा या ईष्र्या नहीं। उन्होंने विश्व परिवार का विचार बताया। विश्वबंधुत्व का सन्देश दिया। दुनिया में परिवार के समान स्नेह और भाईचारा हो, यह बताया। भौतिकता, गलत विचार की धर्मांधता के कारण मानव समाज में अशांति, हिंसा बढे़गी और इस सब के लिये उपाय आध्यात्मिकता ही हो सकती है। इसलिए भारत को जाग्रत होना होगा, समर्थ होना होगा।
पश्चिम के देशों से भी वे भारत के लिए एक उपहार लेकर आये - संगठन। संगठित होकर हम समाज की, वंचित भारत की सेवा करेंगे। संगठित होकर उनका दुःख और अभाव दूर करने का प्रयास करेंगे। यही होगा हमारा कार्य! और इसका सूत्र रहेगा- त्याग और सेवा! समाज के लिए समय निकाल कर समाज की सेवा करना। अपने जीवन में स्वयं के सुख का, काम का त्याग करें और वही समय तथा शक्ति सेवा कार्य में लगाएं।
इस वर्ष (2013.2014) स्वामी विवेकानन्द जन्म का सार्धशती समारोह संपन्न हो रहाहै। इस समारोह में सम्मिलित होकर इसके आयोजन में, प्रचार में, संपर्क अभियान में सहभागी होना है।
इस निमित्त छोटे-छोटे कार्य समाज की सेवा के लिये करने हैं। दूसरों के दुःख, कष्ट दूर करने हैं। अपना सुख बाद में। समाज के कल्याण का कार्य करना ही ईश्वर प्राप्ति है। मनःशांति का यही मार्ग है। यही अध्यात्म है, धर्म है। इसे अपने और सभी के जीवन में लाना है।
यह कार्य युवकों के द्वारा ही होगा यह सोच कर अमेरिका से भारत लौटकर उन्होंने कोलम्बो से अल्मोड़ा तक प्रवास किया। अपने व्याख्यानों से देशभर के युवकों को प्रेरित किया। उनके विचार ही अनेक युवकों के जीवन के सूत्र बने। वे कहते थे -
‘‘मेरा विश्वास आधुनिक युवा पीढ़ी में है। इन्ही में से मेरे कार्यकर्ता आएँगे और सिंह के समान पुरुषार्थ कर सभी समस्याओं का समाधान करेंगे।’’ - ऐसा था उनका युवकों पर विश्वास।
महिलाऐं शक्तिस्वरूपा हैं। वे कहते थे- “ऐसा क्यों है कि हमारा देश सभी देशों में कमजोर और पिछड़ा है? क्योंकि यहाँ शक्ति की अवहेलना होती है, शक्ति का अपमान होता है।’’
शिक्षा के बारे में उन्होंने कहा- ‘‘हमें एैसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढे, बुद्धी विकसित हो और मनुष्य अपने पैरों पर खडा होना सीखे।’’
राजाओं, महाराजाओं, सरदारों और बुद्धिजीवियों को उन्होंने समाज की सेवा के लिए प्रेरित किया। उद्योग के साथ रोजगार और समृद्धि आयेगी यह सोच कर टाटा जैसे उद्योगकों को विज्ञान, तंत्रज्ञान के अध्ययन के लिए प्रेरणा दी।
एक बार कुछ युवा स्वामीजी से मिलने आये। युवकों ने पूँछा, ‘‘धर्म क्या है?’’ स्वामीजी ने कहा, ‘‘गुलामों के लिए कहाँ का धर्म? पहले स्वतंत्र बनो।’’ स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारक नेता जैसे तिलक, गांधी, नेहरु, सुभाषचंद्र बोस आदि सभी की प्रेरणा स्वामी विवेकानन्द थे।
स्वामी विवेकानन्द का कार्य आज भी चल रहा है। अनेक व्यक्ति, संस्था और संगठन इस कार्य में लगे हैं। उसीका परिणाम है कि भारत जाग रहा है, विश्वास के साथ खड़ा हो रहा है। बहुत सारा अच्छा हुआ है - हो रहा है।
परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। जीवन की, विकास की दिशा में आज भी पश्चिमी अनुकरण हो रहा है। अभी भी बहुत सारे देहातों में, झुग्गियों में हालात अच्छे नहीं है। व्यक्तिवादिता हावी होने के कारण अच्छाई का, नैतिकता का ह्रास दिख रहा है। इसलिये स्वामी विवेकानन्द ने जो कार्य शुरू किया है उसे समझना होगा, आगे बढ़ाना होगा।
‘‘स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती’’- यह उचित अवसर है कि स्वामीजी का, उनके विचारों का परिचय युवकों, किशोरी, महिलाओं, ग्राम तथा गिरिवासिओं, समाज के प्रबुद्ध वर्ग को, सभी को हो।
आइये! पूरे जोश और उत्साह के साथ इस पवित्र राष्ट्रकार्य में जुट जाएँ! स्वामी विवेकानन्द सार्धशती समारोह हम सभी मिलकर मनाएँगे, समाज के हर वर्ग को जगाएँगे और भारत का, पूरे विश्व का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने का जो नियत कार्य है उसके लिये उसे सक्षम बनायेंगे।

भारत जागो! विश्व जगाओ!!

"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

श्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत मेला,

http://youtu.be/o7QRyRyQPIs?t=59m57s
:: श्री  नरेन्द्र  मोदी  का  स्वागत, गुजरात में तीसरी बार विजय का मोदी मेला, 11 अशोक रोड, न दि. में 25.दिस.,2012.
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है| -युगदर्पण
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Saturday, December 29, 2012

गीत "संकल्प 2013"

गीत "संकल्प 2013" 

वन्देमातरम, 
भारत माता के पीड़ित वंशजो। जिस अंग्रेजियत ने हमें यह हैप्पी न्यू इयर दिया, उसीके न्यू इयर के अवसर पर, उसीके कारण आज यह देश इस मोड़ पर खड़ा है। कथित आज़ादी के बाद शीर्ष तक जाने के मार्ग भटकने में भूल गए, पहाड़ पर फिसलने का परिणाम। पहाड़ अब फिर से चढ़ेंगे, इस राष्ट्र की डगर पे, किन्तु जरा संभलके। इस पर मंथन, विचार व उपचार, एक नए गीत संकल्प 2013 के माध्यम से देने का प्रयास कर रहा हूँ। चिकित्सीय जाँच के लिए विचार व संकल्प 2013 में मिलेगा उपचार। "मेरा भारत महान" इसे उपहास का विषय बना कर रोके गए, सत्य को जन जन तक पहुंचाएं। कृ.यथासंभव: हमारा भावात्मक मिलान, गीत के सुर मिलान में दर्शायें, व दोहराएंगे।
गीत "संकल्प 2013" 
*ये मेरा प्यारा देश महान, जिसका यश गाता था जहान।
क्यों? उसके ये दुरदिन आये, के सारा देश हुआ परेशान।  
एक कदम फिसले न संभालता, चाहे कितना रहे पहलवान। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
*ऋषि मुनि, महापुरुषों व क्रान्तिकारियों का कर्मक्षेत्र यह।
आतंक भ्रष्टाचार अनाचार और दुराचार का शासन बना ?
दवा लगानी है जो घाव पर, कर जाँच कारण को पहचान। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
*जब राजा ही करे व्याभिचार, तो जनता हो जाती लाचार।
पहला बन्दर सोया रहता है,  दूजा तेरे दर्द नहीं सुनता है।
मौन रहे पर सत्य  कहता, आश्वासन है पाखंड ये जान।  
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
*चोर को थानेदार बनाया, फिर चोरी करने को उकसाया।
अपनों को धक्का देके भगाया, पहले इस गलती को मान।
संकल्प 2013 लेकर तूँ आजा, महाभारत के इस मैदान। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,..
*इन सब को पहचान लिया तो अब टिकने न देंगे भारत में।
मायावी मृग को  हरने देंगे हम अब कोई सीता भारत में।
65 वर्षों हमें छला गया, अब और छलने न देंगे भारत में। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
*आओ फिरसे बनाये देश महान, जिसका यश गाये सारा जहान।
हम सोने की चिड़िया ऐसी बनायें, जहाँ कोई न हो परेशान। 
आने वाला कल चमकाने में, हम आज कर जायेंगे बलिदान। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
*ये मेरा प्यारा देश महान, जिसका यश गाता था जहान।
क्यों? उसके ये दुरदिन आये, के सारा देश हुआ परेशान।  
एक कदम फिसले न संभालता, चाहे कितना रहे पहलवान। 
मेरा भारत, सदा रहा है महानये मेरा प्यारा देश महान,...
आइयें, इस के लिये संकल्प लें: भ्रम के जाल को तोड़, अज्ञान के अंधकार को मिटा कर, ज्ञान का प्रकाश फेलाएं। आइये, शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।। 
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -इस देश को लुटने से बचाने तथा बिकाऊ मेकालेवादी, मीडिया का एक मात्र सार्थक, व्यापक, विकल्प -राष्ट्र वादी मीडिया |अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग...remain connected to -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Monday, December 24, 2012

स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह

स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह 
स्वामी विवेकानन्द जी का 150 वां जयन्ती वर्ष समारोह के उपलक्ष्य में कार्यक्रम 
विश्व मंच पर शिकागो सम्मलेन में भारत की धर्म पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द जी के जन्म के 150 वें जयन्ती वर्ष समारोह शुभारम्भ 25 दिस. के उपलक्ष्य में इंद्रपुरी का लक्ष्मी नारायण मंदिर समय प्रात: 7.30 बजे संकल्प के रूप में मनाया जायेगा ।  इसी प्रकार से देश भर में कार्यक्रम रहेंगे तथा वर्ष भर कार्यक्रम चलते रहेंगे। 
वर्तमान में जिस प्रकार देश की दुर्दशा की जा रही है, धर्म पर अधर्म का दुश्चक्र चल रहा है। धर्म की स्थापना के लिए वह (दिव्य) आयेगा अवश्य, किन्तु न वह राम के जैसे शास्त्र उठाएगा न कृष्ण बन कर सारथी बनेगा । उसने महाभारत में सारथी बन जो उपदेश दिया वह दोहराने भी न आयेगा, वह (दिव्य) पुंज हमें स्वामी विवेकानन्द के स्मरण, व श्री भगवत गीता के पठन से राह दिखायेगा । अब वह निमित्त बना कर कार्य करता है, कर्म योग के द्वारा हमें अर्जुन बनाएगा, वह (दिव्य) पुंज हमारे अपने भीतर प्रकाश मय रहे। 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
इस देश को लुटने से बचाने तथा बिकाऊ मैकालेवादी, शर्मनिरपेक्ष मीडिया का एक मात्र सार्थक विकल्प युगदर्पण YDMS की विविधता, व्यापकता व लेखन का परिचय: युगदर्पण मीडिया समूह YDMS में राष्ट्रवाद के विविध विषय के 25 ब्लाग, 5 चेनल, orkut, FB, ट्वीटर etc सहित एक वेब भी है। अपनी पसंद का विषय 25 में से एक लेकर, मिलकर ही हम बिकाऊ मैकालेवादी, शर्मनिरपेक्ष मीडिया को परास्त कर सकते हैं। -तथा "राष्ट्र वादी मीडिया" उसका विकल्प बन सकता है।"वन्देमातरम" को अपना मंत्र बनायें। 
अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग…remain connected to -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 … www.yugdarpan.com
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Saturday, December 22, 2012

विश्वासघात का विष,

विश्वासघात का विष,

विश्वासघात का विष, ..The toxin of Betrayal
* यही सब
देखना था, क्या
भारत से
इंडिया बन कर ?
क्या इसी
स्वछंदता का
नाम है आज़ादी,
विश्वासघात का विष,
* या
काले अंग्रेजों ने
65 वर्ष में
लिख दी
सदाचार की बर्बादी ?
* इंडिया की चमक दमक में
मेरा भारत
कहाँ पे खोया है ?
शर्मनिरपेक्ष माली ने,
चन्दन के मेरे
नन्दनवन में,
धोखे से
नागफनी क्यों बोया है ?
* वे
मर्यादाएं हैं मिटा रहे,
संसाधन सारे लुटा रहे,
फिर भी
क्यों ऑंखें बंद रखे,
लाचार हम
सभी लगते हैं ?
* अब, प्रश्न उठा,
आखिर कब तक…?,
प्रश्न स्वयं से पूछो जी,
जब चोर बनाये
थानेदार,
व्यवस्था है
सारी ही बीमार,
रक्त रंजित
इस तन के आखिर,
कितने घाव गिनाओगे ?
* हर पल खाये हैं घाव सदा,
पर हम न थके,
तुम गिन गिन के थक जाओगे !
* यह घाव तो
सह ही लेंगे हम,
झूठे आश्वासन
दे देकर;
विश्वासघात
फिर करके तुम,
नए घाव दे जाओगे !
* गले सड़े फल
लाने वाले की
वाह वाह से क्या जाने;
उपहास कहें
या भ्रम का जाल
इसे मानें ?
** विश्वासघात का विष
अभी कितना और पिलाओगे ?
अभी कितना और पिलाओगे ?
“अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||” युगदर्पण
http://filmfashionclubfundaa.blogspot.in/2012/12/blog-post.html"
अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
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Tuesday, May 11, 2010

लाल दुर्ग की दीवारों में दरारें

अविश्वसनीय किन्तु शीतलतादायक गरमागरम सत्य              -अरविन्द कुमार सेन

समय: रात के 8 बजे। स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का माही-मांडवी छात्रावास का भोजनालय। छात्र खाना खा रहे हैं। आइसा, एसएफआई, डीएसयू, पीएसयू और एआईडीएसओ आदि वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य छात्र भोजनालय में पहुंचते हैं। हाथों में बैनर और तख्तियां लिए ये छात्र दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमलें को सही ठहराते हैं और 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' के खिलाफ बोलते हैं। डीएसओ की प्रतिनिधी छात्रा ने मुश्किल से एक मिनट बोला होगा कि अचानक भोजनालय में उपस्थित सारे छात्र चिल्लाने लगते हैं। कोई चम्मच से प्लेट बजा रहा है तो कोई जग से टेबल बजा रहा है। माहौल तनावपूर्ण हो जाता है और वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य बाहर की ओर दौड़ते हैं।
     माही-मांडवी के छात्र भी उनके पीछे-पीछे ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर आ जाते हैं। कुछ छात्र छात्रावास के सूचना पट्ट से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़कर उन्हें गेट के पास जला देते हैं।
छात्रावास के गेट के पास धीरे-धीरे भीड़ जमा होने लगती है। इस भीड़ में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं जो किसी भी छात्र संगठन से नहीं जुड़े हैं। बिना किसी पूर्व योजना के एकत्रित हुए ये छात्र माओवादी हमले की आलोचना करते हैं। अचानक अफवाह फैलती है कि छात्रावास के एक लड़के का भाई भी एस हमले में मारा गया है। भावावेश में सारे छात्र जोर-जोर से नारे लगाते हैं और थोड़ी देर बाद सामने स्थित कोयना छात्रावास की ओर चल देते हैं। आन्दोलनों से दूर रहने वाले विज्ञान संकाय के छात्र भी आज इस भीड़ में शामिल हैं।
     ‘शहीदों हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘चीन के दलालों शर्म करो’ के नारों की गूंज के बीच कोयना छात्रावास के सूचना पट्ट से भी वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं। इतने में छात्रावास से कुछ लड़कियां माचिस लेकर बाहर आती हैं और पोस्टरों को जला देती हैं। इसके बाद छात्र-छात्राओं की यह भीड़ बढती जाती है और एक-एक करके लोहित, चन्द्रभागा, गंगा, यमुना, ताप्ती, साबरमती समेत सभी छात्रावासों के सूचना पट्टों से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं।
     इसके बाद सारी भीड़ 24 गुणा सात ढाबे पर एकत्रित होती है। छात्र-छात्राएं एक-एक करके बोलना शुरू करते हैं। चूंकि भीड़ में किसी संगठन विशेष का कोई छात्र नेता नहीं है इस कारण वक्ताओं के जो मन में आ रहा है, वही बोलते जा रहे हैं। एक लड़की कहती है- बस अब बहुत हो गया, अब और तानाशाही नहीं सहेंगे। क्या कर लेंगे आईसा और एसएफआई वाले जाकर विभाग में सर से शिकायत कर देंगे, ग्रेड कम करवा देंगे, एमफिल में एडमिशन नहीं होगा। कोई बात नहीं, डीयू में चले जाएंगे लेकिन यहां इन लोगो की दादागिरी नहीं सहेंगे।
एक और छात्र गौरव कहता है कि जेएनयू की इस दिखावे की जिंदगी से जी भर गया है। अगर कम्यूनिस्टों के खिलाफ कुछ भी बोलो तो दक्षिणपंथी समझ लिया जाता है और परीक्षा में ग्रेड़ कम कर दिया जाता है। देशभर के मुद्दों के लिए लड़ने का दंभ भरने वाले ये लोग जेएनयू में क्या कर रहे हैं इस सामाजिक संवेदनशीलता के ढोंग से जी भर गया है। गौरव अपनी बुआ के लड़के को याद करते हैं जो हाल ही में हुए माओवादी हमले में मारा गया। गौरव की आंखे नम हो जाती हैं और भर्राई आंखों से यह कहकर अपनी बात खत्म करते है कि बेशक जेएनयू छोड़ना पड़े लेकिन अब इन लोंगो का साथ नहीं देंगे। यह सभा लगभग 11 बजे खत्म हो जाती है।
     समय 11:30 बजे और स्थान जेएनयू का थिंक टैंक सेंटर गंगा ढाबा। गंगा ढाबा आज ऐसी घटना का गवाह बना जो पिछले चार दशकों में कभी नहीं हुई। ऊंची आवाज में होने वाली बहसें और नोक-झोंक आज नहीं हो रही हैं। गंगा ढाबे की पत्थर की कुर्सियां, जहां महफिले जमती थी, आज खामोशी के आवरण में लिपटी हुई हैं। इस सन्नाटे में कुछ छात्र धीमे-धीमे बात कर रहे हैं। आज तो क्रान्ति हो गई, गजब हो गया, माही-मांडवी वालों ने कमाल कर दिया.. यही सब आवाजें रह-रहकर गंगा ढावे की फिजां में तैर रही हैं।
     क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र की छात्रा अनुष्का कहती हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों के खिलाफ छात्र लंबे समय से उबल रहे थे। नक्सली हमले ने छात्रों को अपना आक्रोश जाहिर करने का अवसर दे दिया। छात्र प्रोफेसरों से डरते थे लेकिन आज यह सीमा भी टूट गई और सब छात्र सड़क पर आ गए। अनुष्का के बगल में खड़े राजीव आगे की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों ने विरोध करने के लिए गलत समय का चुनाव किया। 77 जवानों की मौत के बाद माओवादी लोंगो की सहानुभूति खो चुके हैं। एक तो ये संगठन पहले से ही खराब दौर से गुजर रहे हैं और फिर इनके प्रदर्शन से एबीवीपी और एनएसयूआई को मुंह मांगी मुराद मिल गई।
     पिछले 10 सालों से परिसर की राजनीति देख रहे शोध छात्र विवेक कहते हैं कि आज का प्रदर्शन जेएनयू की छात्र राजनीति में नया अध्याय है। पहले एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता प्रदर्शन तो दूर परिसर में पोस्टर तक नहीं चिपका पाते थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज जो हुआ, उसकी तो सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
     वामपंथी खेमा इस घटना के बाद से स्तब्ध है। जिस दुर्ग को सबसे अभेद्य समझा जाता था, आज उसकी दीवारों पर चिपके पोस्टरों पर लिखा है कि कम्यूनिस्ट कोई भी परचा न लगाए। डीएसयू के एक कार्यकर्ता ने दबी जुबान में कहा कि हमने गलत समय पर नक्सलवाद के समर्थन में प्रदर्शन करके एबीवीपी और एनएसयूआई को हावी होने का मौका दे दिया।
     दक्षिण एशिया अध्ययन केन्द्र के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस घटना कि पृष्ठभूमि पिछले पांच साल से तैयार हो रही थी। पहले जेएनयू में बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों के प्रोफेसर और छात्र हावी थे। उस समय हिन्दी पट्टी और खासकर बीएचयू और डीयू के छात्रों का प्रवेश न के बराबर होता था। अब न केवल प्रोफेसर बल्कि डीयू और बीएचयू के छात्र भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं, जो पहले से ही भगवा रंग में रंगे होते हैं।
     खास बात यह है कि एबीवीपी और एनएसयूआई जैसी धुर विरोधी पार्टियां एक साथ मिलकर वामपंथी छात्र संगठनों से लड़ रही हैं। अपने सबसे कठिनतम दौर से गुजर रही वामपंथी पार्टियों के लिए यह एक और बुरी खबर है। बंगाल और केरल के बाद तीसरे मजबूत गढ जेएनयू की दीवारों में भी दरारें आ गई हैं। जिस परिसर में इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह तक को नहीं बोलने दिया गया था, आज उसी जगह कम्यूनिस्ट पार्टियां को पोस्टर तक नहीं लगाने दिया जा रहा है।
     प्रकाश करात और सीताराम येचुरी की कर्मस्थली जेएनयू में आज भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे गूंज रहे हैं। यह देश में वामपंथ की चूलें हिलने का एक और संकेत है।
  "अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है! इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक

Wednesday, January 20, 2010

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