Sunday, October 17, 2010
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
वामपंथियों ने स्वांग रचाया, पहन मुखौटा मानवता का;
ये ही तो देश को बाँट रहे हैं, पहन मुखौटा मानवता का !!
मैं अच्छा हूँ बुरा विरोधी, कहने को तो सब ही कहते हैं;
नकली चेहरों के पीछे किन्तु, जो असली चेहरे रहते हैं;
आओ अन्दर झांक के देखें,और सच की पहचान करें;
कौन है मानवतावादी और, शत्रु कौन, इसकी जाँच करें!
मानवतावादी बनकर जो हमको, प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं;
चर- अचर, प्रकृति व पाषाण, यहाँ सारे ही पूजे जाते हैं;
है केवल हिन्दू ही जो मानता, विश्व को एक परिवार सा;
किसके कण कण में प्रेम बसा, यह विश्व है सारा जानता!
यही प्रेम जो हमारी शक्ति है कभी दुर्बलता न बन जाये;
अहिंसक होने का अर्थ कहीं, कायरता ही न बन जाये ?
इसीलिए जब भी शक्ति की, हम पूजा करने लग जाते हैं;
तब कुछ मूरख व शत्रु हमारे, दोनों थर्राने लग जाते हैं!
शत्रु भय से व मूरख भ्रम से, चिल्लाते जो देख आइना;
मानवता के रक्षक को ही वो, मानवता का शत्रु बतलाते;
नहीं शत्रु हम किसी देश के, किसी धर्म औ मानवता के;
चाहते इस सोच की रक्षा हेतु, हिंदुत्व को रखें बचाके !
अमेरिका में यदि अमरीकी ही अस्तित्व पे संकट आए;
52 मुस्लिम देशों में ही जब, इस्लाम को कुचला जाये;
तब जो हो सकता है दुनिया में, वो भारत में हो जाये;
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!!"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है! इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
Sunday, September 19, 2010
शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन
शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.
उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं!
आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक "अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
जो तिरंगा है देश का मेरे, जिसको हमने स्वयं बनाया था;
हिन्दू हित की कटौती करने को, 3 रंगों से वो सजाया था;
जिसकी रक्षा को प्राणों से बड़ा मान, सेना दे देती बलिदान;
उस झण्डे को जलाते जो, और करते हों उसका अपमान;
शर्मनिरपेक्ष बने वोटों के कारण, साथ ऐसों का दिया करते हैं;
मानवता का दम भरते हैं, क्यों फिर भी शर्म नहीं आती?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
वो देश को आग लगाते हैं, हम उनपे खज़ाना लुटाते हैं;
वो खून की नदियाँ बहाते हैं, हम उन्हें बचाने आते हैं;
वो सेना पर गुर्राते हैं, हम सेना को अपराधी बताते हैं;
वो स्वर्ग को नरक बनाते हैं, हम उनका स्वर्ग बसाते हैं;
उनके अपराधों की सजा को,रोक क़े हम दिखलाते हैं;
अपने इस देश द्रोह पर भी, हमको है शर्म नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
इन आतंकी व जिहादों पर हम गाँधी के बन्दर बन जाते;
कोई इन पर आँच नहीं आए, हम खून का रंग हैं बतलाते;
(सबके खून का रंग लाल है इनको मत मारो)
अपराधी इन्हें बताने पर, अपराधी का कोई धर्म नहीं होता;
रंग यदि आतंक का है, भगवा रंग बताने में हमको संकोच नहीं होता;
अपराधी को मासूम बताके, राष्ट्र भक्तों को अपराधी;
अपने ऐसे दुष्कर्मों पर, क्यों शर्म नहीं मुझको आती;
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी, शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
47 में उसने जो माँगा वह देकर भी, अब क्या देना बाकि है?
देश के सब संसाधन पर उनका अधिकार, अब भी बाकि है;
टेक्स हमसे लेकर हज उनको करवाते, धर्म यात्रा टेक्स अब भी बाकि है;
पूरे देश के खून से पाला जिस कश्मीर को 60 वर्ष;
थाली में सजा कर उनको अर्पित करना अब भी बाकि है;
फिर भी मैं देश भक्त हूँ, यह कहते शर्म मुझको मगर नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
यह तो काले कारनामों का,एक बिंदु ही है दिखलाया;
शर्मनिरपेक्षता के नाम पर कैसे है देश को भरमाया?
यह बतलाना अभी शेष है, अभी हमने कहाँ है बतलाया?
हमारा राष्ट्र वाद और वसुधैव कुटुम्बकम एक ही थे;
फिर ये सेकुलरवाद का मुखौटा क्यों है बनवाया?
क्या है चालबाजी, यह अब भी तुमको समझ नहीं आती ?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !! शर्म मुझको तभी नहीं आती !!पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.
उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं!
आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
इक दिया,तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
Saturday, September 11, 2010
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती!
किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
Sunday, September 5, 2010
राष्ट्र मंडल खेल आयोजन और दिल्ली
राष्ट्र मंडल खेल आयोजन और दिल्ली -तिलक राज रेलन आजाद
जानकारी मिली दिल्ली सरकार से,
कभी पढ़ा था हमने किसी अख़बार से,
राष्ट्र मंडल खेलों का आयोजन होगा,
दिल्ली पर 55 हज़ार करोड़ का व्यय होगा!
दिन महीने वर्ष बीत गए उस शुभ घडी की प्रतीक्षा में,
पता नहीं कौन से पाठ पढ़े थे नेताओं ने अपनी शिक्षा में,
दिल्ली का रंग रूप तो इस आयोजन की तैयारी में भी
बदल नहीं पाया, चुक गयी सारी निधी जाने किस भिक्षा में
इतनी राशी मुझे जो मिल जाती
बिजली- पानी, सड़क भी खिल जाती
दिल्ली यूँ भाग्य पर नहीं रोती
इसके ठहाकों से दुनिया हिल जाती
सारा ढांचा बदल के रख देता
दिल्ली दुल्हन बना के रख देता
देखते जिस ग़ली, सड़क की तरफ
नज़ारों पर नज़र फिसल जाती
ऐसा होना तो तब ही संभव था
बईमानी होना जहाँ असंभव था
नेता हो और बईमानी भी न करे?
ऐसा होना ही तो असंभव था!
कैसा वो करार था और कैसा वो समय होगा
देश के यश का वास्ता दिया मगर अपयश होगा
मदमस्त बेखबर से बैठे है सब क्यों 'तिलक'
यश हो अपयश किसी पे इसका असर कहाँ होगा?
सौभाग्य ऐसा नहीं है दिल्ली का
छींका*लिखा पड़ा है बिल्ली का
(छींका -मलाई की हंडिया)
छींका लिखा पड़ा है बिल्ली का
छींका लिखा.....
Thursday, July 22, 2010
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) - शत शत नमन!
सभी देश भक्तों को हमारे प्रेरणा पुंज पत. चंदर शेखर आजाद के 96 वे जन्म दिवस की शुभकामनाएं
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भगत सिंह के अनन्यतम साथियों में से थे। असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में परिवर्तन आ गया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिकन आर्मी में सम्मिलित हो गए। उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे काकोरी काण्ड तथा सांडर्स-वध को पूर्णता दी।
जन्म तथा प्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले भावरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ। उस समय भावरा अलीराजपुर राज्य की एक तहसील थी। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी संवत 1956 के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले अलीराजपुर राज्य में रहे और फिर भावरा में बस गए। यहीं चंद्रशेखर का जन्म हुआ। वे अपने माता पिता की पाँचवीं और अंतिम संतान थे। उनके भाई बहन दीर्घायु नहीं हुए। वे ही अपने माता पिता की एकमात्र संतान बच रहे। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। पितामह मूलतः कानपुर जिले के राउत मसबानपुर के निकट भॉती ग्राम के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश के थे।संस्कारों की धरोहर
चन्द्रशेखर आजाद ने अपने स्वभाव के बहुत से गुण अपने पिता पं0 सीताराम तिवारी से प्राप्त किए। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे। वे न दूसरों से अन्याय कर सकते थे और न स्वयं अन्याय सहन कर सकते थे। भावरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वा लिए तो तिवारी जी बिना पैसे दिए फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गए। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लाईं इस पर तिवारी जी ने उन्हें खूब डाँटा और 4 दिन तक सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण आजाद ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।आजाद का बाल्य-काल
1919 मे हुए जलियां वाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी व्यथित किया 1921 मे जब महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया तो उन्होने उसमे सक्रिय योगदान किया। यहीं पर उनका नाम आज़ाद प्रसिद्ध हुआ । इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे bandi हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। सजा देने वाले मजिस्ट्रेट से उनका संवाद कुछ इस तरह रहा -तुम्हारा नाम ? आज़ाद
पिता का नाम? स्वाधीन
तुम्हारा घर? जेलखाना
मजिस्ट्रेट ने जब 15 बेंत की सजा दी तो अपने नंगे बदन पर लगे हर बेंत के साथ वे चिल्लाते - महात्मा गांधी की जय। बेंत खाने के बाद 3 आने की जो राशि पट्टी आदि के लिए उन्हें दी गई थी, को उन्होंने जेलर के ऊपर वापस फेंका और लहूलुहान होने के बाद भी अपने एक दोस्त डॉक्टर के यहाँ जाकर मरहमपट्टी करवायी।
सत्याग्रह आन्दोलन के मध्य जब फरवरी 1922 में चौराचौरी की घटना को आधार बनाकर गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह की bhanti आज़ाद का भी काँग्रेस से मोह भंग हो गया और वे 1923 में शचिन्द्र नाथ सान्याल द्वारा उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर बनाए गए दलहिन्दुस्तानी प्रजातात्रिक संघ (एच आर ए) में शामिल हो गए। इस संगठन ने जब गाँवों में अमीर घरों पर डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके तो तय किया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का तमंचा छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बाद bhi आज़ाद ने अपने niyam के कारण उसपर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के 8 सदस्यों, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल शामिल थे, की बड़ी दुर्दशा हुई क्योंकि पूरे गाँव ने उनपर हमला कर दिया था। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का nirnay किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने देशभर में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रांतिकारी) बांटा जिसमें दल की नीतियों का ullekh था। इस parche में रूसी क्रांति की चर्चा मिलती है और इसके लेखक सम्भवतः शचीन्द्रनाथ सान्याल थे।
अंग्रेजों की नजर में
इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया । लेकिन इससे पहले ही अशफ़ाक उल्ला खान ने ऐसी घटनाओं का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जाएगा। और ऐसा ही हुआ। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी को क्रमशः 19 और 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया। इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय रहा और एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन यह योजना पूरी न हो सकी। 8-9 सितम्बर को दल का पुनर्गठन किया गया जिसका नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएसन रखा गया। इसके गठन का ढाँचा भगत सिंह ने तैयार किया था पर इसे आज़ाद का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।चरम सक्रियता
आज़ाद के प्रशंसकों में पंडित मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम bhi था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट जो स्वराज भवन में हुई थी उसका ullekh नेहरू ने 'फासीवदी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचना मन्मनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। यद्यपि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को रूस में समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए एक हजार रूपये दिये थे जिनमें से 448 रूपये आज़ाद की शहादत के samay उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर 1928-31 के बीच शहादत का ऐसा kram चला कि दल लगभग बिखर सा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगतसिंह एसेम्बली में बम फेंकने गए तो आज़ाद पर दल ka pura dayitva aa gaya । सांडर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और फिर बाद में उन्हें छुड़ाने ka pura prayas भी उन्होंने kiya । आज़ाद ke sukhav के viruddh खिलाफ जाकर यशपाल ने 23 दिसम्बर 1929 को दिल्ली के samip वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को 28 मई 1930 को भगवतीचरण वोहरा की बमपरीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था । इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना खटाई में पड़ गई थी। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गाँधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे । झाँसी में रुद्रनारायण, सदाशिव मुल्कापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर मे शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को 1 दिसम्बर 1930 को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में जाते samay शहीद कर दिया था। ve yadi jivit hote to aaj 95 varsh ke hote. unke janam divas ki sabhi desh bhakton ko badhaai.शहादत
25 फरवरी 1931 से आज़ाद इलाहाबाद में थे और यशपाल रूस भेजे जाने सम्बन्धी योजनाओं को अन्तिम रूप दे रहे थे। 27 फरवरी को जब वे अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम अब आज़ाद पार्क कर दिया गया है) में सुखदेव के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे तो किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। इसी मुठभेड़ में आज़ाद शहीद हुए।आज़ाद की शहादत की सूचना जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने sabhi काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए उनका अन्तिम संस्कार कर दिया । बाद में शाम के samay उनकी अस्थियाँ लेकर युवकों का एक जुलूस निकला और सभा हुई। सभा को शचिन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीरामबोस की शहादत के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्बोधित किया। इससे पूर्व 6 फरवरी 1927 को मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे क्योंकि उनके देहान्त से क्रांतिकारियों ने अपना एक सच्चा हमदर्द खो दिया था।
व्यक्तिगत जीवन
आजाद एक देशभक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से सामना करते samay जब उनकी पिस्तौल में antim गोली बची तो उसको उन्होंने svayam पर चला कर शहादत दी थी। उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिए धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद डेरे के 5 लाख की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि साधु मरणासन्न नहीं था और वे वापस आ गए। रूसी क्रान्तिकारी वेरा किग्नर की कहानियों से वे बहुत प्रभावित थे और उनके पास हिन्दी में लेनिन की लिखी एक pustak भी थी। हंलांकि वे svayam पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने मे adhik आनन्दित होते थे। जब वे आजीविका के लिए बम्बई गए थे तो उन्होंने कई फिल्में देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था पर बाद में वे फिल्मो के प्रति आकर्षित नहीं हुए।चंद्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के 16 वर्षों के बाद 15 अगस्त सन् 1947 को भारत की आजादी का उनका सपना पूरा हुआ।
मेरे आदर्श ,मेरी प्रेरणा चन्द्रशेखर आजाद पर लेखन के लिए आभारी हूँ! पत्रकारिता के गटर को साफ करने का प्रयास करते दशक होने को है, आज आप जैसा साथी मिला प्रसन्नता हुई अभी ब्लॉग जगत में संपूर्ण सृष्टि की जानकारी को खंडबद्ध कर विषयानुसार 25 ब्लॉग बनाये हैं yugdarpan.blogspot.com तिलक संपादक युग दर्पण 09911111611, mihirbhoj.blogspot.com
तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें (बंदी भांति नियम उल्लेख पर्चे निर्णय भी )
Friday, June 25, 2010
शुक्रवार, 25 जून 2010( 01:03 IST )
दाम्बुला,से प्राप्त समाचारों के अनुसार श्रीलंका से हारने के मिथक को तोड़ते हुए अंतत: भारत ने अपने इस चिरप्रतिद्वंद्वी को 81 रन से करारी पराजय दी! इसमें दिनेश कार्तिक के जुझारू अर्धशतक और आशीष नेहरा की आक्रामक गेंदबाजी से एशिया कप 15 वर्ष बाद फिर भारत ने जीता।
भारत पाँचवीं बार एशियाई विजेता बना है। इससे पहले हमने 1984, 1988, 1990 और 1995 में यह सम्मान जीता था। इसके बाद 1997, 2004 और 2008 में भी इस महाद्वीपीय क्रिकेट में निर्णायक मोड पर पहुँचा था, किन्तु तीनों अवसरों पर अंत में कप श्रीलंका को मिला।
महेंद्र सिंह धोनी की मंडली असफलता के इस क्रम को तोड़ने में सफल रही, जिसमें उसके शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों और तेज गेंदबाजों विशेषकर नेहरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सिक्का जीतने के बाद पहले बल्लेबाजी के लिए उतरे भारत ने कार्तिक के 84 गेंद पर 66 रन तथा रोहित शर्मा (41) और धोनी (38) के उपयोगी योगदान से 6 विकेट पर 268 रन का चुनौतीपूर्ण स्थान बनाया।
श्रीलंका की टीम को पहले ओवर से ही झटके लगने शुरू हो गए और नेहरा ने बीच में केवल 6 रन के बदले में शीर्ष के 3 बल्लेबाज पवेलियन भेज दिए, तब श्रीलंका का स्कोर रहा मात्र 5 विकेट पर 51 रन! श्रीलंका इस स्थिति उबर नहीं पाया और चमारा कापुगेदारा के अथक 55 रन के बाद भी 44.4 ओवर में 187 रन पर ढेर हो गया। नेहरा ने 9 ओवर में 40 रन देकर 4 विकेट लिए जबकि रविंदर जडेजा और जहीर खान को 2-2 विकेट मिले।
भारतीयों को सम्मान जनक जीत की ओर अग्रसर करने वाले नेहरा ने अपने दूसरे ओवर में अनुभवी माहेला जयवर्धने (11) और बहुअयामी एंजेलो मैथ्यूज (0) को बाहर करने के बाद अगले ही ओवर में कप्तान कुमार संगकारा (17) को भी पैवेलियन की राह दिखाई।
इससे पूर्व भारत की ओर से गौतम गंभीर को छोड़कर शीर्ष क्रम के सभी बल्लेबाजों ने उपयोगी योगदान दिया। कार्तिक ने अपनी अर्धशतकीय पारी के मध्य गंभीर (15) के साथ पहले विकेट के लिए 38, विराट कोहली (28) के साथ दूसरे विकेट के लिए 52 और कप्तान महेंद्रसिंह धोनी (38) के साथ तीसरे विकेट के लिए 46 रन की महत्वपूर्ण साझेदारी की।विगत 32 मैच में एक भी विकेट नहीं लेने वाले कदाम्बी ने इसके बाद अपनी लेग स्पिन से धोनी को भी पैवेलियन की राह दिखाकर भारत का स्कोर 4 विकेट पर 167 रन कर दिया। भारत को कदाम्बी से मिले इन झटकों से रोहित और सुरेश रैना (29) ने उबारा।
भारत ने सातवें ओवर में ही गंभीर का विकेट गँवा दिया। अपना 100वाँ एक दिवसीय मैच खेल रहे बाँए हाथ के इस बल्लेबाज को नुवान कुलशेखरा की लगातार गेंद पर जीवनदान मिला किन्तु वह इसका लाभ उठाने में असफल रहे। गंभीर का कैच पहले कदाम्बी ने स्लिप में छोड़ा और बाद में संगकारा ने उन्हें जीवनदान दिया। गंभीर दूसरा रन लेने के प्रयास में रन बाधित हो गए।
कार्तिक और कोहली जब मैदान पर थे तभी भारत अच्छी स्थिति में दिख रहा था। ऐसे समय में लसिथ मलिंगा ने कोहली को विकेट के पीछे कैच कराकर श्रीलंका को महत्वपूर्ण सफलता दिलाई। कार्तिक ने इसके बाद कामचलाउ स्पिनर कदाम्बी की गेंद पर मिडविकेट में माहेला जयवर्धने को कैच देने से पूर्व धोनी के साथ मिलकर भारतीय पारी संवारी। इन दोनों ने पाँचवें विकेट के लिए 52 गेंद पर 50 रन की साझेदारी की। मलिंगा ने यॉर्कर पर रैना को पगबाधा आउट करके यह साझेदारी तोड़ी। अंतिम ओवरों में रोहित के साथ रविंदर जडेजा (नाबाद 25) ने उपयोगी रन जुटाए।
जयवर्धने और मैथ्यूज दोनों ने बहरी विकेट से बाहर जाती गेंद पर बल्ला अड़ाकर विकेटकीपर धोनी को लपकने का अवसर दे दिया जबकि संगकारा ने इसी प्रकार की गेंद को उछलने करने के प्रयास में जहीर को हवा में लहराता हुआ "कैच मिड ऑन" पर थमाया। कापुगेदारा और तिलना कदाम्बी (31) ने छठे विकेट के लिए 53 रन की साझेदारी करके स्थिति संभालने की चेष्टा की; दोड़ में समन्वय की कमी से रन आउट हो गए। तब कापुगेदारा आगे बढ़ने के बाद पीछे हट गए किन्तु कदाम्बी काफी आगे निकल गए थे। इसके बाद भारत की जीत मात्र औपचारिकता रह गई थी।
श्रीलंकाई गेंदबाजी में अनुशासन की कमी दिखी। पिछले मैच में भारत के विरुद्ध 'हैट्रिक' लेने वाले माहरूफ ने पारी के आरंभ में साधारण गेंदबाजी की व रण दिए। उसका क्षेत्ररक्षण भी सामान्य रहा।
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है। इक दिया, तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे।।"- तिलक
भारत पाँचवीं बार एशियाई विजेता बना है। इससे पहले हमने 1984, 1988, 1990 और 1995 में यह सम्मान जीता था। इसके बाद 1997, 2004 और 2008 में भी इस महाद्वीपीय क्रिकेट में निर्णायक मोड पर पहुँचा था, किन्तु तीनों अवसरों पर अंत में कप श्रीलंका को मिला।
महेंद्र सिंह धोनी की मंडली असफलता के इस क्रम को तोड़ने में सफल रही, जिसमें उसके शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों और तेज गेंदबाजों विशेषकर नेहरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सिक्का जीतने के बाद पहले बल्लेबाजी के लिए उतरे भारत ने कार्तिक के 84 गेंद पर 66 रन तथा रोहित शर्मा (41) और धोनी (38) के उपयोगी योगदान से 6 विकेट पर 268 रन का चुनौतीपूर्ण स्थान बनाया।
श्रीलंका की टीम को पहले ओवर से ही झटके लगने शुरू हो गए और नेहरा ने बीच में केवल 6 रन के बदले में शीर्ष के 3 बल्लेबाज पवेलियन भेज दिए, तब श्रीलंका का स्कोर रहा मात्र 5 विकेट पर 51 रन! श्रीलंका इस स्थिति उबर नहीं पाया और चमारा कापुगेदारा के अथक 55 रन के बाद भी 44.4 ओवर में 187 रन पर ढेर हो गया। नेहरा ने 9 ओवर में 40 रन देकर 4 विकेट लिए जबकि रविंदर जडेजा और जहीर खान को 2-2 विकेट मिले।
भारतीयों को सम्मान जनक जीत की ओर अग्रसर करने वाले नेहरा ने अपने दूसरे ओवर में अनुभवी माहेला जयवर्धने (11) और बहुअयामी एंजेलो मैथ्यूज (0) को बाहर करने के बाद अगले ही ओवर में कप्तान कुमार संगकारा (17) को भी पैवेलियन की राह दिखाई।
इससे पूर्व भारत की ओर से गौतम गंभीर को छोड़कर शीर्ष क्रम के सभी बल्लेबाजों ने उपयोगी योगदान दिया। कार्तिक ने अपनी अर्धशतकीय पारी के मध्य गंभीर (15) के साथ पहले विकेट के लिए 38, विराट कोहली (28) के साथ दूसरे विकेट के लिए 52 और कप्तान महेंद्रसिंह धोनी (38) के साथ तीसरे विकेट के लिए 46 रन की महत्वपूर्ण साझेदारी की।विगत 32 मैच में एक भी विकेट नहीं लेने वाले कदाम्बी ने इसके बाद अपनी लेग स्पिन से धोनी को भी पैवेलियन की राह दिखाकर भारत का स्कोर 4 विकेट पर 167 रन कर दिया। भारत को कदाम्बी से मिले इन झटकों से रोहित और सुरेश रैना (29) ने उबारा।
भारत ने सातवें ओवर में ही गंभीर का विकेट गँवा दिया। अपना 100वाँ एक दिवसीय मैच खेल रहे बाँए हाथ के इस बल्लेबाज को नुवान कुलशेखरा की लगातार गेंद पर जीवनदान मिला किन्तु वह इसका लाभ उठाने में असफल रहे। गंभीर का कैच पहले कदाम्बी ने स्लिप में छोड़ा और बाद में संगकारा ने उन्हें जीवनदान दिया। गंभीर दूसरा रन लेने के प्रयास में रन बाधित हो गए।
कार्तिक और कोहली जब मैदान पर थे तभी भारत अच्छी स्थिति में दिख रहा था। ऐसे समय में लसिथ मलिंगा ने कोहली को विकेट के पीछे कैच कराकर श्रीलंका को महत्वपूर्ण सफलता दिलाई। कार्तिक ने इसके बाद कामचलाउ स्पिनर कदाम्बी की गेंद पर मिडविकेट में माहेला जयवर्धने को कैच देने से पूर्व धोनी के साथ मिलकर भारतीय पारी संवारी। इन दोनों ने पाँचवें विकेट के लिए 52 गेंद पर 50 रन की साझेदारी की। मलिंगा ने यॉर्कर पर रैना को पगबाधा आउट करके यह साझेदारी तोड़ी। अंतिम ओवरों में रोहित के साथ रविंदर जडेजा (नाबाद 25) ने उपयोगी रन जुटाए।
जयवर्धने और मैथ्यूज दोनों ने बहरी विकेट से बाहर जाती गेंद पर बल्ला अड़ाकर विकेटकीपर धोनी को लपकने का अवसर दे दिया जबकि संगकारा ने इसी प्रकार की गेंद को उछलने करने के प्रयास में जहीर को हवा में लहराता हुआ "कैच मिड ऑन" पर थमाया। कापुगेदारा और तिलना कदाम्बी (31) ने छठे विकेट के लिए 53 रन की साझेदारी करके स्थिति संभालने की चेष्टा की; दोड़ में समन्वय की कमी से रन आउट हो गए। तब कापुगेदारा आगे बढ़ने के बाद पीछे हट गए किन्तु कदाम्बी काफी आगे निकल गए थे। इसके बाद भारत की जीत मात्र औपचारिकता रह गई थी।
श्रीलंकाई गेंदबाजी में अनुशासन की कमी दिखी। पिछले मैच में भारत के विरुद्ध 'हैट्रिक' लेने वाले माहरूफ ने पारी के आरंभ में साधारण गेंदबाजी की व रण दिए। उसका क्षेत्ररक्षण भी सामान्य रहा।
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है। इक दिया, तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे।।"- तिलक
Wednesday, May 26, 2010
Lalit Modi's stunning charges against Manohar, Srinivasan
26/05/2010
New Delhi: Lalit Modi, the suspended chairman of the Indian Premier League (IPL) came up with startling disclosures of serious misuse of power by Indian cricket board president Shashank Manohar and secretary N. Srinivasan, pointing out their culpability in a number of decisions, which he alleged were illegal and fradulent.
Modi had prepared a long charge-sheet against Manohar and Srinivasan along with his reply to the showcause notice slapped on him on April 26.
After waiting for ten days for the chief of the Board of Control for Cricket in India (BCCI) to take a view on it, Modi sent out his 14-page charge-sheet against the two top officials to all GC members.
Modi in his letter pointed out how Manohar was solely invovled in some charges levelled against himself in the BCCI notice. He pointed out that the controversial decision to scrap the initial opening of tenders was taken by Manohar and it was he who went out of his way to entertain former minister of state for external affairs Shashi Tharoor and accept the Kochi bid much after the lapse of deadline.
Modi's charges against Srinivasan were much more serious. He accused the BCCI secretary of manipulating the minutes of the board meetings, players' auction for the third edition and the appointment of umpires in the second IPL in South Africa to help his team, Chennai Super Kings, misusing his office as the board secretary.
Modi revealed another startling fact, which was part of former BCCI president A.C. Muthiah's contention before a court: That the BCCI's constitution to allow Srinivasan to own an IPL team was never amended, and that he has submitted a false affidavit in the court to justify his dual status, with the connivance of Manohar and IPL vice-chairman Niranjan Shah.
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है! इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
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