मु.मं.क्या पहली बार यमुनापार ?
मुख्यमंत्री पद के लिए अपने प्रत्याशी की भाजपा ने चुनाव से पूर्व घोषणा से ही, पूर्वी दिल्ली का कृष्णा नगर क्षेत्र अचानक चर्चा में आ गया।
कृष्णा नगर ही नहीं, यमुनापार के दूसरे क्षेत्रों में भी यह प्रश्न चर्चा का विषय बन गया कि क्या वास्तव दिल्ली को पहली बार यमुनापार से कोई मुख्यमंत्री मिलेगा। अभी चर्चाओं का बाजार गर्म ही था कि कांग्रेस ने भी एक नया दांव खेलकर कृष्णा नगर को फिर से चर्चा को गर्म कर दिया।
इसी क्षेत्र से भाजपा के पार्षद रहे, डॉ. वी. के. मोंगा ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का पल्लू पकड़ लिया और कांग्रेस ने मोंगा को हर्षवर्धन के विरुद्ध ही चुनाव मैदान में उतारकर स्पर्धा को रोचक बना दिया। आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं रही, उसने एक मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर और रोचक बना दिया। किन्तु इसके बाद भी यहां मुख्य संघर्ष कांग्रेस और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है।
लोगों का मानना है कि 'आप' ने इशरत अली अंसारी की घोषणा करने में काफी देर लगा दी। इसके चलते अंसारी को लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए अधिक समय नहीं मिल पाया। अधिकतर यही मान रहे हैं कि आम आदमी पार्टी यहां भाजपा के बजाय कांग्रेस को अधिक क्षति पहुंचाएगी। जबकि यहां के रशीद मार्केट में रहने वाले बाबू खान और मोहम्मद युसूफ का कहना है कि यहां मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो व्यक्तिगत रूप से डॉ. हर्षवर्धन को उनकी अच्छी छवि के चलते बहुत पसंद करता है और इसलिए मुस्लिम वोटों का कुछ भाग भाजपा के खाते में भी जाएगा।
विशेषकर उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाए जाने का मुस्लिम वोटरों पर काफी असर पड़ेगा। खुरेजी के रहने वाले मोइनुद्दीन अलवी और गुलजार इससे सहमती नहीं रखते। उनके अनुसार इस क्षेत्र में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहा है और उन लोगों को इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि कांग्रेस ने किसे अपना प्रत्याशी बनाया है। जहां तक भाजपा का प्रश्न है, तो केवल हर्षवर्धन ही नहीं, बल्कि पूरी पार्टी की साख यहां दांव पर लगी हुई है।
विगत 20 वर्षोंसे कृष्णा नगर सीट जीतते आ रहे, डॉ. हर्षवर्धन इस बार जीत की रजत जयंती मना पाएंगे कि नहीं, यह तो 8 दिसंबर को ही पता चलेगा, किन्तु झील में रहने वाले बृज मल्होत्रा और श्याम सेठी का मानना था कि भाजपा द्वारा डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाए जाने का लाभ तो उन्हें अवश्य मिलेगा और जो लोग पहले उन्हें वोट देने को लेकर आश्वस्त नहीं थे, वो भी अब उन्हें वोट देने के बारे में सोचेंगे।
किन्तु दूसरी ओर यहां श्रवण कुमार जैसे लोग भी हैं, जिनका कहना है कि 15 वर्षमें इस क्षेत्र में कोई विकास कार्य नहीं हुआ। वर्षा होते ही गलियों में पानी भर जाता है और सड़कें तालाब में बदल जाते है। वहीं ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि यह अंतराल शीला के शासन का था अत: डॉ. हर्षवर्धन का मुख्यमंत्री होना आवश्यक है। जहां तक क्षेत्र की महिलाओं का प्रश्न है, तो कई महिलाओं ने बातचीत में यही कहा कि महंगाई उनके लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है और वो इसी को ध्यान में रखकर वोट डालेंगी। इसप्रकार ये सभी बिंदु डॉ. हर्षवर्धन के पक्ष में ही जाते हैं, देखना यह है कि क्या वे मुख्यमंत्री बन पाते हैं ?
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
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