वो,
जो किसी विशेष
समुदाय या परिवार
से जुड़,
राजनीति में घुस गए !
एक समूह के नेता बन,
नारे देते उत्थान के उनके !
या
शर्मनिरपेक्ष चालों से,
है
वोट बैंक
बना लेते !
वो कल तक
झुग्गी बस्ती में
या किसी
"रेस्तरां में बेयरा हों,"
भले
सामान्य नौकरी की
योग्यता न हो उनमें!
हैं, देखते देखते
कुबेर स्वामी बन जाते ?
जबकि अति विद्वान्,
व कर्मठ भी
दैनिक आवश्यकताओं की
पूर्ति नहीं कर पाते!
कठोर परिश्रम से
जूझते हैं;
मात्र, एक पग
बढाने को ?
और ये
राजनैतिक चाल बाज़
कैसे;
आगे बाद जाते हैं,
प्रकाश से भी तीव्र गति से, ..
प्रकाश से भी तीव्र गति से ...?
तिलक
संपादक युग दर्पण 9911111611
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;
अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक
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