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घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है। कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है। शिशु, युवा, बाल, किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है। राष्ट्र के आधारस्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है। "अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है। इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे।।" (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण
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Thursday, April 15, 2010

राष्ट्र की बलि वेदी पर शीश चदाने वालों को समर्पित "प्रकाश स्तम्भ"

युवा केवल आयु/ वय नहीं; कुछ कर दिखाने के ओज, साहस व भाव के साथ निडरता,शोर्य,पराक्रम,ऊर्जा,उमंग, स्फूर्ति ये विश्लेषण जिसके लिए बने उसकी दीप्ती को लगते आधुनिकता के जंग को छुड़ाने हेतु आह्वान :-
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है !
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"
प्रकाश स्तम्भ
मोम से बना, प्रकाश का एक स्तम्भ (मोमबत्ती) हूँ मैं!
अन्धकार से संघर्ष की निरन्तरता का आरम्भ हूँ मैं!!
प्रकाश स्तम्भ बन जाना नहीं इतना सरल है;
निरन्तर स्वयं को गलाना, और पीना गरल है;
इसलिए कि लक्ष्य मेरा तिमिर को ही दूर करना;
जी सके सारा जहाँ, जीते जी पड़ता है मुझे जरुर मरना;
मेरी मृत्यु में नहीं है अन्त मेरा, मैं मानता हूँ;
अधिकारों से पहले कर्तव्यों को पहचानता हूँ
सृष्टि का फिर हो सृजन, उस सृजन का प्रारंभ हूँ मैं !
मोम से बना, प्रकाश का एक स्तम्भ हूँ मैं!!
     मैं जानता हूँ, शहीदों के बलिदान का क्या मोल है;
     कहीं से भी चल के देखो यह धरा तो गोल है;
     भुला दोगे तुम मुझे, रंगरलियों में खो जाओगे;
     मैं काँटों पे चलता रहूँ, तुम कलियों पे सो जाओगे;
     फिरभी जलना और मिटना नियति मेरी, मानता हूँ;
     राष्ट्र भक्ति धर्म मेरा इतना ही बस जानता हूँ
     शत्रुओं का शत्रु और इस राष्ट्र का दंभ हूँ मैं!
     मोम से बना, प्रकाश का एक स्तम्भ हूँ मैं !!
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.
चन्दन तरुषु भुजन्गा
जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"- तिलक

2 comments:

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...
This comment has been removed by the author.
चैट said...

बढ़िया पोस्ट. मैं आगे और अधिक पढ़ने के लिए तत्पर हैं! बहुत बहुत धन्यवाद!