"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
Sunday, February 15, 2015
विश्व कप में पाक के विरुद्ध भारतीय विजय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज एडिलेड ओवल में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को हराकर क्रिकेट विश्व कप में अपने अभियान का शुभारम्भ जीत के साथ करने के लिए भारतीय टीम को बधाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में कहा, ‘‘टीम इंडिया को बधाई। अच्छा खेले। हम सभी को आप पर गर्व है।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने इससे पूर्व विश्व कप के आरम्भ से पूर्व प्रत्येक भारतीय क्रिकेटर को व्यक्तिगत रूप से अपनी शुभकामना दी थी। गत विजेता भारत ने आज यहां पाकिस्तान को 76 रन से हराकर अपने अभियान का भव्य श्रीगणेश और इस चिर प्रतिद्वंद्वी टीम के विरुद्ध विश्व कप के सभी मैचों में विजयी निरंतरता को बनाए रखा। इस एकपक्षीय स्पर्धा से भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध विश्व कप में निरंतर छठी विजय कित की।
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
Saturday, February 14, 2015
"वेलेन्टाइन डे"
"वेलेन्टाइन डे"
"Live in Relationship"
ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अभिजात्य वर्ग में चल रहा है, इसका अर्थ होता है कि "बिना विवाह के पती-पत्नी की तरह से रहना"।
प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) देकातेर्, और रूसो इन सभी महान(!) दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती", "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये"।
वैलेंटाइन 1500 वर्ष जन्मे, वे -कहते थे, जानवरों की भांति, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, उनके विवाह वो चर्च में कराते थे। उस समय रोम का राजा था, क्लौड़ीयस, उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था, कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, अर्थात विवाह करना अपराध था।
जिनका विवाह वैलेंटाइन ने करवाया था, उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दी गई। वे सब उस वैलेंटाइन की दुखद स्मृति में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाने लगे, तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है। हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे, एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये ही कार्ड वो दे देते हैं। इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं, जिनको कार्ड बेचना है, जिनको उपहार बेचना है, जिनको *चाकलेट बेचनी हैं और विज्ञापन हेतु टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया।
पाश्चात्य अंधानुकरण में वैलेंटाइन डे के नाम से वही सब करने लगे, जिसका उसने विरोध किया और फांसी का दंड झेलना पड़ा। वाह रे! वैलेंटाइन के अंध भक्तो, पढ़े लिखे कहाते हो, और चौपाये (पशु) बन जाते हो ! भारतीयता का उपहास उड़ाते, हमें अपने पूर्वजों को दकियानूसी बताते हो? जिसे मना रहे हो, उसका इतिहास, कारण तथा परिणाम तो जान लो।
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है,
परिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
"Live in Relationship"
ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अभिजात्य वर्ग में चल रहा है, इसका अर्थ होता है कि "बिना विवाह के पती-पत्नी की तरह से रहना"।
प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) देकातेर्, और रूसो इन सभी महान(!) दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती", "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये"।
वैलेंटाइन 1500 वर्ष जन्मे, वे -कहते थे, जानवरों की भांति, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, उनके विवाह वो चर्च में कराते थे। उस समय रोम का राजा था, क्लौड़ीयस, उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था, कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, अर्थात विवाह करना अपराध था।
जिनका विवाह वैलेंटाइन ने करवाया था, उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दी गई। वे सब उस वैलेंटाइन की दुखद स्मृति में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाने लगे, तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है। हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे, एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये ही कार्ड वो दे देते हैं। इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं, जिनको कार्ड बेचना है, जिनको उपहार बेचना है, जिनको *चाकलेट बेचनी हैं और विज्ञापन हेतु टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया।
पाश्चात्य अंधानुकरण में वैलेंटाइन डे के नाम से वही सब करने लगे, जिसका उसने विरोध किया और फांसी का दंड झेलना पड़ा। वाह रे! वैलेंटाइन के अंध भक्तो, पढ़े लिखे कहाते हो, और चौपाये (पशु) बन जाते हो ! भारतीयता का उपहास उड़ाते, हमें अपने पूर्वजों को दकियानूसी बताते हो? जिसे मना रहे हो, उसका इतिहास, कारण तथा परिणाम तो जान लो।
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है,
परिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है |
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Thursday, February 12, 2015
असम नगर निगम चुनाव में भाजपा की भव्य विजय
असम नगर निगम चुनाव में भाजपा की भव्य विजय
युदस: किसी नकारात्मक मसालेदार मीडिया ने इसे दर्शाया? असम में हुए शहरी निगम बोर्ड चुनाव परिणामों ने, दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार की पीड़ा झेल रही भाजपा के घावों पर मरहम लगाने का काम किया है। निकाय चुनाव में भाजपा ने प्राय:50 % नगरपालिकाओं में विजय अर्जित की और पहली बार कांग्रेस को पछाड़ा। दो दिन पहले दिल्ली में बुरी तरह पराजय से पीड़ित भाजपा को असम निकाय चुनाव में राहत मिली है। इससे पार्टी में उत्साह का संचार हुआ है। नौ फरवरी को हुए चुनाव में 14 लाख मतदाताओं में से 74 % ने वोट डाले थे।
गुरुवार को आए चुनाव परिणामों के अनुसार, भाजपा ने 74 नगरपालिकाओं में से 38 में बहुमत प्राप्त किया है, जबकि कांग्रेस को 17 नगरपालिकाओं में जीत मिली। असम गण परिषद को मात्र दो नगरपालिका जबकि एनसीपी को एक में जीत मिली है। वार्डों की संख्या के अनुसार, प्रदेश के कुल 743 वार्डों में से 702 के परिणाम आए। इसमें भाजपा को 340 वार्ड , जबकि कांग्रेस को 232 व असम गण परिषद को 39 वार्डों में विजय प्राप्त हुई. अन्य पार्टियों को 10 से भी कम वार्ड मिले।
उत्तिष्ठत अर्जुन, उत्तिष्ठत जाग्रत !
नकारात्मक मीडिया के भ्रम के जाल को तोड़, सकारात्मक ज्ञान का प्रकाश फैलाये।
समाज, विश्व कल्याणार्थ देश की जड़ों से जुड़ें, युगदर्पण मीडिया समूह के संग।। YDMS
जब नकारात्मक बिकाऊ मीडिया जनता को भ्रमित करे,
तब पायें - नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प-
युगदर्पण मीडिया समूह YDMS.
Join YDMS युगदर्पण हिंदी साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र, 2001 से
पंजी सं RNI DelHin11786/2001(सोशल मीडिया में विशेष प्रस्तुति
विविध विषयों के 30 ब्लाग, 5 नेट चेनल व अन्य सूत्र) की
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70 से अधिक देशों में एक वैश्विक पहचान। -तिलक -संपादक युगदर्पण मीडिया समूह YDMS 07531949051, 9999777358, 9911111611
যুগদর্পণ, યુગદર્પણ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ, யுகதர்பண യുഗദര്പണ యుగదర్పణ ಯುಗದರ್ಪಣ,
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
जो शर्मनिरपेक्ष, अपने दोहरे चरित्र व कृत्य से- देश धर्म संस्कृति के शत्रु;
राष्ट्रद्रोह व अपराध का संवर्धन, पोषण करते। उनसे ये देश बचाना होगा। तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
फ्री वाई फाई का वादा, नियम और शर्तों में
फ्री वाई फाई का वादा, नियम और शर्तों में
नई दिल्ली: चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में फ्री वाई फाई शहर बनाने का वादा किया था. अब वादा निभाने का समय आया तो फ्री वाई फाई नियम और शर्तों के चक्कर में फंस गया है। सरकार के संभावित उप मु.मं मनीष सिसोदिया ने भी साफ कर दिया है कि फ्री का अर्थ कई नियम-शर्तें हैं।
मनीष सिसौदिया ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा, 'ऐसा नहीं है कि आप सारी फिल्में वाई-फाई पर देखते रहो। मूल आवश्यकता के लिए फ्री वाई-फाई मिलेगा। जैसे कि महिला सुरक्षा के लिए, आप मोबाइल पर बटने लगाकर क्या करेंगे जब इंटरनेट ही नहीं होगा तो, यदि फ्री वाई-फाई होगा तो हम संपर्क कर पाएंगे।'
सिसौदिया का कहना था, 'हम मोबाइल के लिए ई-गर्वर्नेंस लेकर आएंगे। इन सबके लिए चाहिए। अब सारा वाई-फाई फ्री हो जाएगा ऐसा नहीं है। साफ पानी और शिक्षा की तरह ही दिल्ली की आवश्यकता है।'
कैसे पूरा होगा वादा?
केजरीवाल ने दिल्ली को फ्री वाईफाई जोन में बदलने का बड़ा वादा किया है और इसका व्यय डेढ़ हजार करोड़ से भी अधिक हो सकता है। दिल्ली का दिल धड़क रहा है। दिल्ली को ग्लोबल सिटी बनाने और महिलाओं की सुरक्षा के वादे के साथ केजरीवाल ने दिल्ली को फ्री वाई-फाई जोन में बदलने का वादा भी किया है, किन्तु क्या ये वादा पूरा होगा?
जरा तुलना कीजिए
- एक ओर है दिल्ली और दूसरी ओर है अमेरिका का शहर मिनेपोलिस
- दिल्ली का क्षेत्रफल है प्राय: 1500 वर्ग किमी, जबकि मिनेपोलिस का 150 वर्ग किलोमीटर
- दिल्ली का जनसँख्या है 1.8 करोड़ और मिनेपोलिस की है 4 लाख
- मिनेपोलिस पूरी तरह वाईफाई क्षेत्र है जिस पर कुल खर्च आया है 25 मिलियन डॉलर अर्थात प्राय: 150 करोड़ रुपये
- अब यदि क्षेत्रफल के स्तर से देखें तो दिल्ली को वाई-फाई बनाने के लिए 10 गुना अधिक पैसा खर्च करना पड़ सकता है अर्थात प्राय: 1500 करोड़ रुपये
- यही नहीं वार्षिक रखरखाव का खर्च भी 2 लाख डॉलर है अर्थात प्राय: सवा करोड़ रुपये
- अधिक जनसँख्या के लिए रखरखाव भी महंगा हो सकता है।
अमेरिका को छोड़िए। भारत का उदहारण देखिए। प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी क्षेत्र के इन दो घाटों को भी इसी सप्ताह फ्री वाई-फाई जोन बनाया गया है। दशाश्वमेध घाट और शीतला घाट पर फ्री वाई-फाई की योजना लागू हो गई है। प्रधानमंत्री के चुनावी क्षेत्र में फ्री वाई-फाई के लिए प्राय: 100 करोड़ रुपये का खर्च आया है।
ऐसे में क्या केजरीवाल उस दिल्ली के मात्र 37 हजार करोड़ के बजट से मोटी राशि दिल्ली की हवाओं में तैरते इंटरनेट पर खर्च करने जा रहे हैं। दिल्ली के युवा वोटरों के लिए केजरीवाल को निजी खिलाड़ियों से भी जूझना है और ऐसे में देखना ये होगा कि दिल्ली में कब तक फ्री वाईफाई होता है।
इस बात को भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि फ्री वाई-फाई होगा तो उसकी निर्धारित सीमा तय क्या होती है। वाराणसी में फ्री वाईफाई के लिए सीमा तय की गई है।
- 30 मिनट तक वाई-फाई का उपयोग निशुल्क होगा
- इसके बाद के लिए कंपनियों के डाटा कार्ड दिए जाएंगे जिसमें
- 30 मिनट के लिए 20 रुपये
- 60 मिनट के लिए 30 रुपये
- 120 मिनट के लिए 50 रुपये
- पूरे दिन के लिए 70 रुपये, आपको अपनी जेब से खर्च करने पड़ेंगे।
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
Friday, January 23, 2015
राष्ट्र शक्ति का आह्वान
राष्ट्र शक्ति का आह्वान
যুগদর্পণ, યુગદર્પણ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ, யுகதர்பண യുഗദര്പണ యుగదర్పణ ಯುಗದರ್ಪಣ,
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
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उत्तिष्ठत अर्जुन, उत्तिष्ठत जाग्रत ! Share, You Care.
वन्देमातरम, पहले सनसनी फैला कर मीडिया देश को भ्रमित कर अपनी लोकप्रियता का दम भरता था। इसी मीडिया की उपज केजरीवाल भी सनसनी फैला कर मीडिया देश को भ्रमित कर अपनी लोकप्रियता का दम भरता है। यही उसका प्रमुख शस्त्र और शक्ति का प्रमुख स्रोत है। स्वघोषित ईमानदार, स्वयं महाभ्रष्ट होकर, अपने पापों को ढकने के लिए ही सब पर लांछन लगा कर, भ्रमित करने वाले सनसनी पूर्ण वक्तव्य देता है। इस प्रकार की राजनैतिक शैली अराजकता की जनक तो हो सकती है। किन्तु राष्ट्र समाज की शक्ति नहीं।
भारत भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्त हो,
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Thursday, January 22, 2015
मीडिया एक जनून
मीडिया एक जनून
युग दर्पण एक व्यवसाय नहीं, अपितु स्वस्थ मीडिया के लिए जनून है। एक व्यवसाय का संहार हो सकता है किन्तु एक सृजनात्मक जनून का नहीं। सन 2001 से पंजी युगदर्पण राष्ट्रिय साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदी में लघु आकार सम्पूर्ण व स्वस्थ समाचार, संस्कार युक्त विचार तथा 2010 से इंटरनेट से जुड़ा तो 70 देशों में एक विशिष्ठ पहचान अर्जित की है, जिसमे विविध विषयों के 30 ब्लॉग फेसबुक में 9 समूह 7 समुदाय पेज ट्वीटर रेडिफ शामिल है। ऑरकुट भी था। तथा 5 नेट चैनल हैं।
Media my Passion
Yug Darpan is not a professionbut the passion for Healthy Media. A profession may destruct but a passion can't, will never die YDMS.
नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प,
देश की जड़ों से जुड़ें, युगदर्पण के संग
-युगदर्पण मीडिया समूह YDMS- तिलक संपादक 7531949051, 9911111611
बनते हैं 125 करोड़ शेयर -Share and Share, to reach 125 Crore
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
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Sunday, January 18, 2015
प्राथमिकता - कश्मीरी पंडित पुनर्वास
अब प्राथमिकता हो कश्मीरी पंडित पुनर्वास
युगदर्पण प्रस्तुति (साभार प्रवीण गुगनानी स्तंभकार विसके)कश्मीर में 19 जनवरी 1990 को बर्बर जनसंहार के बाद 25 वर्षों का लम्बा अंतराल बीत गया है। जिसमें कश्मीरी पंडितों को कुछ मिला है तो मात्र दिल्ली और श्रीनगर की असंवेदनशीलता। कश्मीर के सर्वाधिक नए जन सांख्यिकीय आंकड़ों पर दृष्टी डालें तो स्वतंत्रता के समय घाटी में 15% कश्मीरी पंडितों की जनसँख्या थी, जो आज 1 % से नीचे होकर 0 % की ओर बढ़ रही है, क्यों ? कहाँ गए वो 14 % पंडित ? मानवता का डैम भरने वाले कथित मानवता वादियों के पास इसका कोई उत्तर है ?
वर्तमान के इतिहास में कश्मीर के ज.स. आंकड़ों में यदि परिवर्तन का सबसे बड़ा कारक खोजें, तो वह एक दिन अर्थात 19 जनवरी 1990 के नाम से जाना जाता है। कश्मीरी पंडितों को उनकी मातृभूमि से खदेड़ देने की इस घटना की यह भीषण और वीभत्स कथा 1989 में आकार लेने लगी थी। पाकिस्तान प्रेरित और प्रायोजित आतंकवादी और अलगाववादी यहाँ अपनी जड़ें जमा चुके थे। भारत सरकार आतंकवाद की कथित समाप्ति में लगी हुई थी, उस काल में वहां रह रहे ये। कश्मीरी पंडित भारत सरकार के मित्र और इन आतंकियों-अलगाववादियों के शत्रु और खबरी सिद्ध हो रहे थे। इस काल में कश्मीर में अलगाववादी समाज और आतंकवादियों ने शांतिप्रिय हिन्दू पंडित समाज के विरुद्ध चल रहे, अपने धीमें और छदम संघर्ष को घोषित संघर्ष में बदल दिया। इस भयानक नरसंहार पर फारुक अब्दुल्ला की रहस्यमयी चुप्पी और कश्मीरी पंडित विरोधी मानसिकता केवल इस घटना के समय ही सामने नहीं आई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला अपने पिता शेख अब्दुल्ला के कदमों पर चलते हुये अपना कश्मीरी पंडित विरोधी आचरण कई बार सार्वजनिक कर चुके थे।
19 जनवरी 1990 के मध्ययुगीन, भीषण और पाशविक दिन के पूर्व जमात-ऐ-इस्लामी द्वारा कश्मीर में अलगाववाद को समर्थन करने और कश्मीर को हिन्दू विहीन करने के उद्देश्य से हिज्बुल मुजाहिदीन की स्थापना हो गई थी। इस हिजबुल मुजाहिदीन ने 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के स्थानीय समाचार पत्र में एक विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई, जिसमें स्पष्टतः सभी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने की धमकी दी गई थी। इसी क्रम में दूसरी ओर पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री बेनजीर ने भी टीवी पर कश्मीरियों को भारत से मुक्ति पाने को लेकर एक भड़काऊ भाषण दे दिया। घाटी में निर्बाध भारत विरोधी नारे लगने लगे। घाटी की मस्जिदों में अजान के स्थान पर हिन्दुओं के लिये धमकियां और हिन्दुओं को खदेड़ने या मार-काट देने के विषाक्त आह्वान बजने लगे। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र अल-सफा ने भी इस विज्ञप्ति का प्रकाशन किया था। इस भड़काऊ, घृणाक्त, धमकी, हिंसा और भय से भरे शब्दों और आशय वाली विज्ञप्ति के प्रकाशन के बाद कश्मीरी पंडितों में गहरे तक भय, डर घबराहट का संचार हो गया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि तब तक कश्मीरी पंडितों के विरोध में कई छोटी बड़ी घटनाएं सतत घट ही रही थी और कश्मीरी प्रशासन और भारत सरकार दोनों ही उन पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे।
19 जनवरी 1990 की भीषणता को कश्मीर और भारत सरकार की विफलता के साथ ही इससे समझा जा सकता है, कि पूरी घाटी में कश्मीरी पंडितों के घर और दुकानों पर नोटिस चिपका दिये गये थे, कि 24 घंटो के भीतर वे घाटी छोड़ कर चले जायें या इस्लाम ग्रहण कर कड़ाई से इस्लाम के नियमों का पालन करें। घरों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाने की काली घटना से भी भारत और कश्मीरी सरकारें चेती नहीं और परिणाम स्वरुप पूरी घाटी में कश्मीरी पंडितों के घर धूं-धूं जल उठे। तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला इन घटनाओं पर रहस्यमयी आचरण अपनाए रहे, वे कुछ करने का अभिनय करते रहे और कश्मीरी पंडित अपनी ही भूमि पर ताजा इतिहास की सर्वाधिक पाशविक-बर्बर-क्रूरतम गतिविधियों का निर्बाध शिकार होते रहे। कश्मीरी पंडितों के सिर काटे गये, कटे सर वाले शवों को चौक-चौराहों पर लटकाया गया। बलात्कार हुये, कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ पाशविक-बर्बर अत्याचार हुये। गर्म सलाखें शरीर में दागी गई और मन सम्मान के भय से सैकड़ों कश्मीरी पंडित स्त्रियों ने आत्महत्या करने में ही भलाई समझी। बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों के शवों का समुचित अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया गया था, कश्यप ऋषि के संस्कारवान कश्मीर में संवेदनाएं समाप्त हो गई और पाशविकता-बर्बरता का वीभत्स नंगा नाच दिखा था। ये कोई मुग़ल कालीन ही इतिहास नहीं, मात्र 25 वर्ष के शर्मनिरपेक्ष यथार्थ की गाथा है।
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और हिजबुल मुजाहिदीन ने प्रत्यक्ष और सार्वजनिक रूप से इस हत्याकांड का नेतृत्व किया था। ये सब एकाएक नहीं हुआ था, हिजबुल और अलगाववादियों का अप्रत्यक्ष समर्थन कर रहे फारुख अब्दुल्ला तब भी चुप रहे थे या कार्यवाही करने का अभिनय मात्र कर रहे थे, जब भाजपाई और कश्मीरी पंडितों के नेता टीकालाल टपलू की 14 सितंबर 1989 को दिनदहाड़े ह्त्या कर दी गई थी। अलगाववादियों को कश्मीर प्रशासन का ऐसा वरद हस्त प्राप्त रहा कि बाद में उन्होंने कश्मीरी पंडित और श्रीनगर के न्यायाधीश एन. गंजू की भी ह्त्या की और प्रतिक्रया होने पर 320 कश्मीरी स्त्रियों, बच्चों और पुरुषों की ह्त्या कर दी थी। ऐसी कितनी ही ह्रदय विदारक, अत्याचारी और बर्बर घटनाएं कश्मीरी पंडितों के साथ घटती चली गई और दिल्ली सरकार लाचार देखती भर रही और उधर श्रीनगर की सरकार तो जैसे खुलकर इन आतताइयों के पक्ष में आ गई थी। अन्ततोगत्वा वही हुआ, जो वहां के अलगाववादी, आतंकवादी हिजबुल और जेकेएलऍफ़ चाहते थे। कश्मीरी पंडित पूर्व की घटनाओं, घरों पर नोटिस चिपकाए जाने और व्यापक जनसंहार से घबराकर 19 जनवरी 1990 को साहस खो चुके तो फारुख अब्दुल्ला के कुशासन में आतंकवाद और अलगाववाद चरम पर आकर विजयी हुआ और इस दिन साढ़े तीन लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों, दुकानों, खेतों, बाग और संपत्तियों को छोड़कर विस्थापित होकर दर-दर की ठोकरें खानें को बाध्य हो गये। कई कश्मीरी पंडित अपनों को खोकर गये, अनेकों अपनों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाये, और हजारों तो यहाँ से निकल ही नहीं पाये और मार-काट डाले गये। विस्थापन के बाद का जो समय आया वह भी किसी प्रकार से आतताइयों द्वारा दिये गये कष्टों से कम नहीं रहा। सरकारी शिविरों में नारकीय जीवन जीने को बाध्य हुये. हजारों कश्मीरी पंडित दिल्ली, मेरठ, लखनऊ जैसे नगरों में लू से इसलिये मृत्यु को प्राप्त हो गए, क्योंकि उन्हें गर्म मौसम में रहने का अभ्यास नहीं था।
25 वर्ष पूर्ण हुये, किन्तु कश्मीरी पंडितों के घरों पर हिजबुल द्वारा नोटिस चिपकाये जाने से लेकर विस्थापन तक और विस्थापन से लेकर आज तक के समय में मानवाधिकार, मीडिया, सम्मलेन , तथाकथित बुद्धिजीवी, मोमबत्ती बाज और संयुक्त राष्ट्र संघ; सभी इस विषय में न्यूनाधिक बोले या नहीं, यह तो नहीं दिखा सुना, किन्तु इन कश्मीरी पंडितों की समस्या का कोई ठोस हल अब तक नहीं निकला, यह पूरे विश्व को पता है। ये सच से मुंह मोड़ने और शतुरमुर्ग होने का ही परिणाम है, कि कश्मीरियों के साथ हुई घटना को शर्मनाक ढंग से स्वेच्छा से पलायन बताया गया! इस घटना को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सामूहिक नर संहार मानने से भी नकार दिया, ये घोर अन्याय और तथ्यों की असंवेदी अनदेखी है!! नरेन्द्र मोदी सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास हेतु प्रतिबद्ध है और वह इस प्रतिबद्धता को दोहराती रही है। दुर्योग है कि नमो को प्रधानमन्त्री बनने के बाद अवसर नहीं मिला। पहले कश्मीर में बाढ़ आ गई और फिर चुनाव आ गये। जिससे कश्मीरी पंडितों का उनका संकल्प परवान नहीं चढ़ पाया, किन्तु अब समय आ गया है। पच्चीस वर्षों के इस दयनीय, नारकीय और अपमानजनक अध्याय का अंत होना चाहिये। अब कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हो, पुनर्प्रतिष्ठा हो, कश्मीरियत का पुनर्जागरण हो, यह आशा और विश्वास है।
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"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
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