टूट जाता है...टूट जाता है....
जो रोज़ा 6 वर्ष की बच्ची से मस्जिद में बलात्कार करने से नहीं टूटता ?
औरतों और बच्चों की हत्या व रक्त पात, चोरी-छिनारी और सारे कुकर्म करने, हिन्दू धार्मिक स्थलों के अपमान में अर्थात विश्व के किसी भी कुकर्म से इस्लाम में रोजा नहीं टूटता ? न मौलवियों के लिए न उनके शर्मनिरपेक्ष पिट्ठू नेताओं तथा बिकाऊ मैकालेवादी, मुल्लावादी, शर्मनिरपेक्ष मीडिया के लिए, रोटी के एक निवाले से टूट जाता है।
टूट जाता है...टूट जाता है....कैसे इनका रोज़ा टूट जाता है ? रोटी के एक निवाले से टूट जाता है।
*इस्लाम में रोजा 6 वर्ष की बच्ची से मस्जिद में बलात्कार करने से नहीं टूटता ?
*रोजा रक्त पात, औरतों और बच्चों की हत्या से भी नहीं टूटता... जैसा कि ईराक में हो रहा है और अधिक पाकिस्तान और हिन्दुस्तान में इन मुल्लों का नंगा नाच तो कहीं भी देखने को मिल जाता है।
*रोजा चोरी-छिनारी और सारे कुकर्म करने के बाद झूठ बोलने से भी नहीं टूटता?
*हिन्दुओं पर हमला करने से, हवन कुंद में पेशाब करने से, हिन्दू धार्मिक स्थलों में आगजनि करने से, शिवलिंग को ठोकर मारने से भी इन मुल्लों के रोजे नहीं टूटते, जैसा सब इन्होने अमरनाथ यात्रा में किया ?
*उत्तम व्यंजन के लिए उचित राशि लेकर पैसों के लालच में बेईमानी करके घटिया खाद्य सामग्री देकर धोखाधड़ी से भी रोजा नहीं टूटता ?अर्थात विश्व के किसी भी कुकर्म से इस्लाम में रोजा नहीं टूटता....? पर मुह पर रोटी लगने से रोजा टूट जाता है..... और हमारी मीडिया का रोजा किसी हिन्दू पर अत्याचार से नहीं टूटता, पर मुल्लों पर इनका भी रोजा टूट जाता है? क्या हमारा मैकालेवादी मीडिया भी, मुल्ला मुलायम की राह चल, मुल्लावादी हो गया है ?
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