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what's App no 9971065525 DD-Live YDMS दूरदर्पण विविध राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय विषयों पर दो दर्जन प्ले-सूची https://www.youtube.com/channel/UCHK9opMlYUfj0yTI6XovOFg एवं CD-Live YDMS चुनावदर्पण https://www.youtube.com/channel/UCjS_ujNAXXQXD4JZXYB-d8Q/channels?disable_polymer=true Old
घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है। कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है। शिशु, युवा, बाल, किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है। राष्ट्र के आधारस्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है। "अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है। इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे।।" (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण
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Friday, January 23, 2015

राष्ट्र शक्ति का आह्वान

राष्ट्र शक्ति का आह्वान 

उत्तिष्ठत अर्जुन, उत्तिष्ठत जाग्रत !    Share, You Care.

वन्देमातरम, पहले सनसनी फैला कर मीडिया देश को भ्रमित कर अपनी लोकप्रियता  का दम भरता था।  इसी मीडिया की उपज केजरीवाल भी सनसनी फैला कर मीडिया देश को भ्रमित कर अपनी लोकप्रियता  का दम भरता है। यही उसका प्रमुख शस्त्र और शक्ति का प्रमुख स्रोत है। स्वघोषित ईमानदार,  स्वयं महाभ्रष्ट होकर, अपने पापों को ढकने के लिए ही सब पर लांछन लगा कर, भ्रमित करने वाले सनसनी पूर्ण वक्तव्य देता है। इस प्रकार की राजनैतिक शैली अराजकता की जनक तो हो सकती है। किन्तु राष्ट्र समाज की शक्ति नहीं। 
भारत भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्त हो, 

नकारात्मक मीडिया के भ्रम के जाल को तोड़, सकारात्मक ज्ञान का प्रकाश फैलाये। 

समाज, विश्व कल्याणार्थ देश की जड़ों से जुड़ें, युगदर्पण मीडिया समूह के संग।। YDMS

      जब नकारात्मक बिकाऊ मीडिया जनता को भ्रमित करे, 
तब पायें - नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प- युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. 
Join YDMS ;qxniZ.k हिंदी साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र, 2001 से
पंजी सं RNI DelHin11786/2001(सोशल मीडिया में विशेष प्रस्तुति 
     विविध विषयों के 30 ब्लाग, 5 नेट चेनल  अन्य सूत्र) की

        70 से अधिक देशों में एक वैश्विक पहचान। -तिलक -संपादक युगदर्पण मीडिया समूह YDMS  07531949051, 9999777358, 9911111611

যুগদর্পণ, યુગદર્પણ  ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ, யுகதர்பண യുഗദര്പണ  యుగదర్పణ  ಯುಗದರ್ಪಣ
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"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Thursday, January 22, 2015

मीडिया एक जनून

मीडिया एक जनून 
युग दर्पण एक व्यवसाय नहीं, अपितु स्वस्थ मीडिया के लिए जनून है। एक व्यवसाय का संहार हो सकता है किन्तु एक सृजनात्मक जनून का नहीं। सन 2001 से पंजी युगदर्पण राष्ट्रिय साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदी में लघु आकार सम्पूर्ण व स्वस्थ समाचार, संस्कार युक्त विचार तथा 2010 से इंटरनेट से जुड़ा तो 70 देशों में एक विशिष्ठ पहचान अर्जित की है, जिसमे विविध विषयों के 30 ब्लॉग फेसबुक में 9 समूह 7 समुदाय पेज ट्वीटर रेडिफ शामिल है। ऑरकुट भी था। तथा 5 नेट चैनल हैं। 
Media my Passion 
Yug Darpan is not a professionbut the passion for Healthy Media. A profession may destruct but a passion can't, will never die YDMS.
नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, 
देश की जड़ों से जुड़ें, युगदर्पण के संग 
-युगदर्पण मीडिया समूह YDMS- तिलक संपादक 7531949051, 9911111611 
बनते हैं 125 करोड़ शेयर -Share and Share, to reach 125 Crore 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Sunday, January 18, 2015

प्राथमिकता - कश्मीरी पंडित पुनर्वास

अब प्राथमिकता हो कश्मीरी पंडित पुनर्वास

फाइल फोटो---दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान कश्मीरी पंडितयुगदर्पण प्रस्तुति (साभार प्रवीण गुगनानी स्तंभकार विसके)  
कश्मीर में 19 जनवरी 1990 को बर्बर जनसंहार के बाद 25 वर्षों का लम्बा अंतराल बीत गया है। जिसमें कश्मीरी पंडितों को कुछ मिला है तो मात्र दिल्ली और श्रीनगर की असंवेदनशीलता। कश्मीर के सर्वाधिक नए जन सांख्यिकीय आंकड़ों पर दृष्टी डालें तो स्वतंत्रता के समय घाटी में 15% कश्मीरी पंडितों की जनसँख्या थी, जो आज 1 % से नीचे होकर 0 % की ओर बढ़ रही है, क्यों ? कहाँ गए वो 14 % पंडित ? मानवता का डैम भरने वाले कथित मानवता वादियों के पास इसका कोई उत्तर है ? 
वर्तमान के इतिहास में कश्मीर के ज.स. आंकड़ों में यदि परिवर्तन का सबसे बड़ा कारक खोजें, तो वह एक दिन अर्थात 19 जनवरी 1990 के नाम से जाना जाता है। कश्मीरी पंडितों को उनकी मातृभूमि से खदेड़ देने की इस घटना की यह भीषण और वीभत्स कथा 1989 में आकार लेने लगी थी। पाकिस्तान प्रेरित और प्रायोजित आतंकवादी और अलगाववादी यहाँ अपनी जड़ें जमा चुके थे। भारत सरकार आतंकवाद की कथित समाप्ति में लगी हुई थी, उस काल में वहां रह रहे ये। कश्मीरी पंडित भारत सरकार के मित्र और इन आतंकियों-अलगाववादियों के शत्रु और खबरी सिद्ध हो रहे थे। इस काल में कश्मीर में अलगाववादी समाज और आतंकवादियों ने शांतिप्रिय हिन्दू पंडित समाज के विरुद्ध चल रहे, अपने धीमें और छदम संघर्ष को घोषित संघर्ष में बदल दिया। इस भयानक नरसंहार पर फारुक अब्दुल्ला की रहस्यमयी चुप्पी और कश्मीरी पंडित विरोधी मानसिकता केवल इस घटना के समय ही सामने नहीं आई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला अपने पिता शेख अब्दुल्ला के कदमों पर चलते हुये अपना कश्मीरी पंडित विरोधी आचरण कई बार सार्वजनिक कर चुके थे। 
19 जनवरी 1990 के मध्ययुगीन, भीषण और पाशविक दिन के पूर्व जमात-ऐ-इस्लामी द्वारा कश्मीर में अलगाववाद को समर्थन करने और कश्मीर को हिन्दू विहीन करने के उद्देश्य से हिज्बुल मुजाहिदीन की स्थापना हो गई थी। इस हिजबुल मुजाहिदीन ने 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के स्थानीय समाचार पत्र में एक विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई, जिसमें स्पष्टतः सभी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने की धमकी दी गई थी। इसी क्रम में दूसरी ओर पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री बेनजीर ने भी टीवी पर कश्मीरियों को भारत से मुक्ति पाने को लेकर एक भड़काऊ भाषण दे दिया। घाटी में निर्बाध भारत विरोधी नारे लगने लगे। घाटी की मस्जिदों में अजान के स्थान पर हिन्दुओं के लिये धमकियां और हिन्दुओं को खदेड़ने या मार-काट देने के विषाक्त आह्वान बजने लगे। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र अल-सफा ने भी इस विज्ञप्ति का प्रकाशन किया था। इस भड़काऊ, घृणाक्त, धमकी, हिंसा और भय से भरे शब्दों और आशय वाली विज्ञप्ति के प्रकाशन के बाद कश्मीरी पंडितों में गहरे तक भय, डर घबराहट का संचार हो गया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि तब तक कश्मीरी पंडितों के विरोध में कई छोटी बड़ी घटनाएं सतत घट ही रही थी और कश्मीरी प्रशासन और भारत सरकार दोनों ही उन पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे। 
19 जनवरी 1990 की भीषणता को कश्मीर और भारत सरकार की विफलता के साथ ही इससे समझा जा सकता है, कि पूरी घाटी में कश्मीरी पंडितों के घर और दुकानों पर नोटिस चिपका दिये गये थे, कि 24 घंटो के भीतर वे घाटी छोड़ कर चले जायें या इस्लाम ग्रहण कर कड़ाई से इस्लाम के नियमों का पालन करें। घरों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाने की काली घटना से भी भारत और कश्मीरी सरकारें चेती नहीं और परिणाम स्वरुप पूरी घाटी में कश्मीरी पंडितों के घर धूं-धूं जल उठे। तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला इन घटनाओं पर रहस्यमयी आचरण अपनाए रहे, वे कुछ करने का अभिनय करते रहे और कश्मीरी पंडित अपनी ही भूमि पर ताजा इतिहास की सर्वाधिक पाशविक-बर्बर-क्रूरतम गतिविधियों का निर्बाध शिकार होते रहे। कश्मीरी पंडितों के सिर काटे गये, कटे सर वाले शवों को चौक-चौराहों पर लटकाया गया। बलात्कार हुये, कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ पाशविक-बर्बर अत्याचार हुये। गर्म सलाखें शरीर में दागी गई और मन सम्मान के भय से सैकड़ों कश्मीरी पंडित स्त्रियों ने आत्महत्या करने में ही भलाई समझी। बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों के शवों का समुचित अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया गया था, कश्यप ऋषि के संस्कारवान कश्मीर में संवेदनाएं समाप्त हो गई और पाशविकता-बर्बरता का वीभत्स नंगा नाच दिखा था। ये कोई मुग़ल कालीन ही इतिहास नहीं, मात्र 25 वर्ष के शर्मनिरपेक्ष यथार्थ की गाथा है। 
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और हिजबुल मुजाहिदीन ने प्रत्यक्ष और सार्वजनिक रूप से इस हत्याकांड का नेतृत्व किया था। ये सब एकाएक नहीं हुआ था, हिजबुल और अलगाववादियों का अप्रत्यक्ष समर्थन कर रहे फारुख अब्दुल्ला तब भी चुप रहे थे या कार्यवाही करने का अभिनय मात्र कर रहे थे, जब भाजपाई और कश्मीरी पंडितों के नेता टीकालाल टपलू की 14 सितंबर 1989 को दिनदहाड़े ह्त्या कर दी गई थी। अलगाववादियों को कश्मीर प्रशासन का ऐसा वरद हस्त प्राप्त रहा कि बाद में उन्होंने कश्मीरी पंडित और श्रीनगर के न्यायाधीश एन. गंजू की भी ह्त्या की और प्रतिक्रया होने पर 320 कश्मीरी स्त्रियों, बच्चों और पुरुषों की ह्त्या कर दी थी। ऐसी कितनी ही ह्रदय विदारक, अत्याचारी और बर्बर घटनाएं कश्मीरी पंडितों के साथ घटती चली गई और दिल्ली सरकार लाचार देखती भर रही और उधर श्रीनगर की सरकार तो जैसे खुलकर इन आतताइयों के पक्ष में आ गई थी। अन्ततोगत्वा वही हुआ, जो वहां के अलगाववादी, आतंकवादी हिजबुल और जेकेएलऍफ़ चाहते थे। कश्मीरी पंडित पूर्व की घटनाओं, घरों पर नोटिस चिपकाए जाने और व्यापक जनसंहार से घबराकर 19 जनवरी 1990 को साहस खो चुके तो फारुख अब्दुल्ला के कुशासन में आतंकवाद और अलगाववाद चरम पर आकर विजयी हुआ और इस दिन साढ़े तीन लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों, दुकानों, खेतों, बाग और संपत्तियों को छोड़कर विस्थापित होकर दर-दर की ठोकरें खानें को बाध्य हो गये। कई कश्मीरी पंडित अपनों को खोकर गये, अनेकों अपनों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाये, और हजारों तो यहाँ से निकल ही नहीं पाये और मार-काट डाले गये। विस्थापन के बाद का जो समय आया वह भी किसी प्रकार से आतताइयों द्वारा दिये गये कष्टों से कम नहीं रहा। सरकारी शिविरों में नारकीय जीवन जीने को बाध्य हुये. हजारों कश्मीरी पंडित दिल्ली, मेरठ, लखनऊ जैसे नगरों में लू से इसलिये मृत्यु को प्राप्त हो गए, क्योंकि उन्हें गर्म मौसम में रहने का अभ्यास नहीं था। 

25 वर्ष पूर्ण हुये, किन्तु कश्मीरी पंडितों के घरों पर हिजबुल द्वारा नोटिस चिपकाये जाने से लेकर विस्थापन तक और विस्थापन से लेकर आज तक के समय में मानवाधिकार, मीडिया, सम्मलेन , तथाकथित बुद्धिजीवी, मोमबत्ती बाज और संयुक्त राष्ट्र संघ; सभी इस विषय में न्यूनाधिक बोले या नहीं, यह तो नहीं दिखा सुना, किन्तु इन कश्मीरी पंडितों की समस्या का कोई ठोस हल अब तक नहीं निकला, यह पूरे विश्व को पता है। ये सच से मुंह मोड़ने और शतुरमुर्ग होने का ही परिणाम है, कि कश्मीरियों के साथ हुई घटना को शर्मनाक ढंग से स्वेच्छा से पलायन बताया गया! इस घटना को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सामूहिक नर संहार मानने से भी नकार दिया, ये घोर अन्याय और तथ्यों की असंवेदी अनदेखी है!! नरेन्द्र मोदी सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास हेतु प्रतिबद्ध है और वह इस प्रतिबद्धता को दोहराती रही है। दुर्योग है कि नमो को प्रधानमन्त्री बनने के बाद अवसर नहीं मिला। पहले कश्मीर में बाढ़ आ गई और फिर चुनाव आ गये। जिससे कश्मीरी पंडितों का उनका संकल्प परवान नहीं चढ़ पाया, किन्तु अब समय आ गया है। पच्चीस वर्षों के इस दयनीय, नारकीय और अपमानजनक अध्याय का अंत होना चाहिये। अब कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हो, पुनर्प्रतिष्ठा हो, कश्मीरियत का पुनर्जागरण हो, यह आशा और विश्वास है। 
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"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

Friday, January 2, 2015

पी. के. फिल्म का प्रदर्शन रोका

पी. के. फिल्म का प्रदर्शन रोका
unnamed (1)विरोध प्रदर्शन में बजरंग दल ने कमला नगर घंटा घर स्थित अम्बा सिनेमा व नेहरू प्लेस स्थित सत्यम सिनेमा पर प्रदर्शन कर अपना विरोध अभियान जारी रखा. बजरंग दल के प्रांत संयोजक श्री नीरज दोनेरिया ने कहा कि हिन्दू समाज सहिष्णु तो है किन्तु उसे भीरु कदापि न समझा जाये. उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दू समाज की रक्षार्थ हमारा यह विरोध अभियान फिल्म बंद होने तक जारी रहेगा। इस बीच तीनों सिनेमा घरों ने न सिर्फ फिल्म का प्रदर्शन रोका बल्कि कल इस फिल्म को अपने-अपने सिनेमा घरों से हमेशा के लिए विदा करने का आश्वासन भी दिया.

unnamed (2)विहिप के प्रवक्ता श्री विनोद बंसल ने बताया कि आज दोपहर बारह बजे का शो प्रारम्भ होने से पूर्व दुर्गा  वाहिनी तथा बजरंग दल के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी सेक्टर 11 स्थित G3S सिनेमा तथा कमला नगर स्थित अम्बा सिनेमा के बाहर एकत्र हो गए तथा फिल्म के विरोध में नारेबाजी करने लगे. बाद में सिनेमा हाल के मैनेजरों के इस आश्वासन के बाद कि हम फिल्म का यह शो रद्द कर रहे हैं तथा कल से फिल्म हमारे हाल से सदा के लिए विदा हो जायेगी, प्रदर्शनकारी शांत हुए. प्रदर्शन के मध्य कार्यकर्ताओं ने फिल्म के पोस्टर जलाए तथा आमिर खान का पुतला भी फूंका . फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्षा लीला भंसाली के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा था की हमारा काम प्रमाण पत्र 'सर्टिफिकेट' जारी करना है प्रतिबन्ध लगाना नहीं, पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि या तो वर्तमान बोर्ड का चरित्र बदला जाये अन्यथा इसका नाम सेंसर बोर्ड के स्थान पर अंध प्रमाण पत्र बोर्ड ब्लाइंड सर्टिफिकेशन बोर्ड‘ रख दिया जाये.
unnamed (3)प्रदर्शनकारियों में विश्व हिन्दू परिषद् के महामंत्री श्री राम कृष्ण श्रीवास्तव, प्रान्त सत्संग प्रमुख श्री जगदीश चंद्र अग्रवाल, विभाग मंत्री श्री पियूष चन्द्र, जिला मंत्री श्री रवि गुप्ता तथा श्री अजय गुप्ता बजरंग दल प्रांत सह संयोजक श्री शिव कुमार, प्रांत सुरक्षा प्रमुख श्री श्याम कुमार, प्रांत विद्यार्थी प्रमुख श्री राजीव भारद्वाज, श्री राकेश पांडे, श्री संजय सिकरिया, श्री सुनील गर्ग, श्री अशोक सैनी तथा संदीप चौधरी सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शामिल थे.
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक

असफल आतंकी प्रयास

तटरक्षक बल ने विस्फोटकों से भरी पाक नौका रोकी 
भारतीय तटरक्षक ने अरब सागर में भारत–पाकिस्तान सीमा के पास विस्फोटकों से भरी एक नौका रोकी, किन्तु उस पर सवार लोगों ने उसमें आग लगा दी, जिसके बाद वह डूब गई। यह घटना मुम्बई आतंकवादी हमले की छठी बरसी के एक माह बाद हुई है। एक गुप्तचर सूचना के आधार पर गत 31 दिसम्बर की आधी रात को, तटरक्षक जहाज और विमान द्वारा मछली पकड़ने वाली एक संदिग्ध नौका को रोकने का प्रयास किया गया। 
रक्षा मंत्रालय की ओर से आज जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि 31 दिसम्बर को प्राप्त गुप्तचर सूचना के अनुसार कराची के केटी बंदरगाह से मछली पकड़ने वाली एक नौका अरब सागर में कुछ नियम विरूद्ध कार्य की योजना बना रही थी। सूचना के अनुसार भारतीय तटरक्षक बल के एक डोर्नियर विमान ने समुद्र–हवाई समन्वित खोजी अभियान शुरू किया और मछली पकड़े जाने वाली नौका का पता लगा लिया।
इसके बाद क्षेत्र में गश्त कर रहे तटरक्षक जहाज को उस ओर भेजा गया, जिसने नौका को 31 दिसम्बर की आधी रात को पोरबंदर से 365 किलोमीटर पश्चिम––दक्षिण पश्चिम दिशा में रोकने का प्रयास किया गया। तटरक्षक बल के जहाज ने मछली पकड़ने वाली नौका को, चालक दल एवं कार्गो की जांच के लिए रूकने की चेतावनी दी। यद्यपि नौका ने अपनी गति बढ़ा दी और भारत की समुद्री सीमा से दूर भागने का प्रयास किया।
नौका का पीछा करने का क्रम प्राय: एक घंटे तक चला और तटरक्षक दल चेतावनी देने के लिए गोलियां चलाकर नौका को रोकने में सफल रहा। वक्तव्य में कहा गया है कि नौका पर चार व्यक्तियों को देखा गया जिन्होंने तटरक्षक की रूकने और जांच में सहयोग करने की सभी चेतावनियों को अनदेखा किया। 
नीतीश कुमार ने आज कहा कि भाजपा का विजय रथ इस वर्ष बिहार में रूक जाएगा, क्योंकि पार्टी चुनावी वादे निभाने में अपनी असफलता को छिपाने के लिए विभाजनकारी रणनीति अपना रही है। 
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
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